Tuesday, February 21, 2012

ना जाने क्यूं....?

ना जाने क्यूं....?
आजकल आदमी का खून
खौलता नहीं
सामाजिक कुरीतियों
बुराईयों,अत्याचार
अनाचार भ्रष्टाचार
देखकर........
चलते-चलते देखना बंद
कर देती हैं आँखे
और कान बंद कर
देता है सुनना जैसे
सच यही अनदेखी
और
अनसुनापन
भ्रष्टाचार का बन
गया है जनक..........
आज आंसू का मोल
नहीं रहा कराह पर
आदमी का दिल नहीं
पसीजता
कैसा दौर ....?
आज लोग हो गए कैसे.?
आदमी खेलने का
सामान हो गया है.........
मतलब के लिए आँख में
धूळ झोकना
मान-सम्मान,इज्जत,जजबात
और
हक़ से खेलना
आज आदमी का
शौक हो गया है
ये कैसा दौर
शुरू हो गया है......
कल से खेलता आदमी
दिल से पथरीला
कल-पुर्जा हो गया है
क्या खून खौलेगा....?
क्या दिल पिघलेगा......?
आदमी आदमियत भूल गया है
और
आज के आदमी का
जीवन सार
बस स्वार्थ रह गया है...........नन्दलाल भारती 22.02.2012

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