Sunday, February 5, 2012

prarabdh की आभा उसी के हिस्से........

कर्म ने ज़िंदगी के पन्नो पर
उकेरे है,प्रारब्ध के हिस्से
अभावों की इबारत
लिखे हैं भूख के किस्से...........
ज़िंदगी बस चलते रहना
लाचारियाँ,कमजोरियां
कही सुलगता दर्द
मुश्किलों की चाकी आदमी पिसे
रार,ना हार बस हौशले
जश्न भी आते हैं जीवन में हिस्से...................
ज़िंदगी सांस का नाम
सुख-दुःख, धूप-छांव के किस्से
कही शहनाई किसी के हिस्से...................
शोले का दरिया
कही मशहूर
शबनम की छुअन के किस्से
कसे कमर,उम्मीदों के पर
आम आदमी की कामयाबी के
अमर हुए है किस्से.............
दुनिया अँधियारा और उजियारा
तम का गम अदने के हिस्से
इंसानियत का सिपाही
सम-सद्कर्म का राही रहा जो
प्रारब्ध की आभा
उसी के हिस्से................नन्दलाल भारती 06.02.2012

No comments:

Post a Comment