उठ जाग मुसाफिर,हुआ विहान
पूरब की आभा ज्योतिर्मय पहचान,
झरता ज्योतिर्पुंज झरझर
आँख मूंदना अब स्वयं पर
अपराध सरासर,
बाँधो मुन्ठी, तम जीवन कर दूर
विहान नया ज्योतिर्धन भरपूर,
कर ना पाए, तम दमन अब
जड़ से चेतन हो जाओ
शोषित,पीड़ित दीन वंचित सब,
जागो आभा पहचानो
ठान लो तम से समर
जीवन हो ज्योतिर्मय,पूरा सफ़र
ना कर प्यारे मन खिन्न
मत बटो भिन्न-भिन्न,
उठ जाग मुसाफिर
चौखट नया विहान,नयी आभा
सकल ज्योतिर्धन जोड़ेगी
तम का कर दो मर्दन
ज्योतिर्मय आभा काल के माथे सज
जय जयकार मचाएगी
उठ जाग मुसाफिर
कारीरात फिर ना आएगी................नन्दलाल भारती /24.02.2012
Thursday, February 23, 2012
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