आह ये कैसा जहां.?
जहा वेदना मिलती विदाई
झराझर श्रमकण बहते
दीन-दरिद्र अछूत तक कहते
अश्रू दल झरते जल दल जैसे
जहां का अधियारा लागे कसाई
आह ये कैसा जहां.?
जहा वेदना मिलती विदाई...........
जीवन चलता आतंक की साया
विपन्नता निरंतर भयावह
तालीम दहली भेद की छाया
दबे-कुचलों की सुधि किसको आयी
आह ये कैसा जहां.?
जहा वेदना मिलती विदाई.............
भूख ढीठ पालथी मारे पसरी चौखट
तिरछी निगाहें डंसती सबकी
शोषित-पीड़ित जीवन आस की परछाईं
आह ये कैसा जहां.?
जहा वेदना मिलती विदाई...........
लूटा श्रम ठगी कमाई
शोषित का जीवन रथ पतझर
शोषण,उखाड फेकने की
बूढ़ी जिद सरपट अपने पथ
पद-दलित हार-हार
जीतने होड़ रहा लगाई
आह ये कैसा जहां.?
जहा वेदना मिलती विदाई.......
हे जहां के मालिक
करुण कथा तो बांच लेता
जीवन बसंत लौटा देता
सही ना जाती वेदना
वापस ले लो अपनी थाती
कब तक भरे सांस आस की बाटी
हे दुनिया के रखवाले
तेरी दुनिया रास ना आयी
आह ये कैसा जहां.?
जहा वेदना मिलती विदाई..............नन्दलाल भारती 23.02.2012
Wednesday, February 22, 2012
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