Wednesday, March 4, 2015

अभ्युदय/कविता 
अपनी जहां स्वर्ग की कोई बस्ती होती
गर अपनी जहां,
मुर्दाखोरो की हस्ती ना बनी होती। 
आदमी को बदनसीब बनाने के लिए 
मुर्दाखोर किस्म के लोग 
अमानुषता जातिवाद-धर्मवाद जैसे 
धारदार औंजारो का करते उपयोग । 
मुर्दाखोर आदमियत के  दुश्मन 
हर तरकीबे 
अपनाते बदनसीब बनाने के लिए 
हर हाल में स्वंय जीत पक्की  लिए । 
अपनी जहां का 
श्रमवीर-कर्मवीर बदनसीब ना होता 
अपनी जहा में 
गर भेदभाव का धारदार औंजार  होता।  
अपनी जहा की  बदनसीबी का तंज 
छुआछूत जातिवाद का सिसकता रंज   । 
काश अपनी जहा के लोगो ने 
बदनसीबी के कारणों को ,
नकार दिया होता 
अरे  अपनी जहा वालो ,
अपनी जहा की नसीब का 
अभ्युदय युगो पहले हो गया होता ……… 
डॉ  नन्द लाल भारती 
03.03.2015    


बदनसीब कल का महान /कविता

बदनसीब कल का महान  /कविता 
अपनी जहां में नसीब क्या है 
दैवीय चमत्कार में रंगा 
एक आतंक 
रूढ़िवादिता के यौवन में 
मौंका,कर-श्रमफल ठगने का उपाय 
बुध्दिहीन मानकर,कुबुध्दि का प्रदर्शन 
नसीब तो कर्म-श्रम से सजती है ……… 
अपनी जहां में नसीब के रूप निराले 
विषधर जैसे फुफकारते गोर-गोरे 
पसीना बहाते आंसू से रोटी गीली करते 
माथे पर चिंता के पहाड़ थामे 
पेट पीठ से चिपकाए 
लवाही जैसे सूखे काले काले  ……… 
अपनी जहां में 
कर्म-श्रमफल ठगा गया 
हक़ पर डांका  डाला गया 
आदमी को अछूत तक बनाया गया 
ठगी का इल्जाम 
नसीब के  माथे मढ़ा गया 
नसीब का क्यों और कैसा दोष 
दोषी तो वह नरपिशाच 
जो जीते हुए को सर्वहारा बना दिया 
नसीब को बदनसीब बना दिया 
काश बदनसीबों को 
समानता का मौंका मिल गया होता 
उजड़ी नसीब का सूर्योदय हो गया होता 
अरे अपनी जहां वालो 
आज का बदनसीब कल का महान है 
वही इस जहां कि  पहचान है................... 
डॉ  नन्द लाल भारती 
05 03.2015