Saturday, August 25, 2012

क्या नही कर सकता इंसान ......

क्या नही कर सकता इंसान ......
सच क्या नही कर सकता इंसान
जिद पक्की करने की  ठान ले इंसान
जनहित  लोकहित संग हो  ईमान
चाँद तक पहुँच गया इंसान
सच क्या नही कर सकता इंसान ...............
चट्टानों में हरित क्रांति
पाषाणों को पिघला सकता इंसान
असाध्य को साध्य बनता
मंगल ग्रह पर टाक जहा इंसान
सच क्या नही कर सकता इंसान ...............
परमार्थ में जब-जब हुआ काम
दुःख बादल भले हो बरसे
आखिर में जीता है इंसान
हार वही जहां बस बसता स्वार्थ
डरता रहता मन बार-बार
जीतने की ताकत रखता इंसान
सच क्या नही कर सकता इंसान ...............
नफ़रत-भेदभाव
ईश्वर का प्रतिनिधि इंसान
कण-कण में बसता भगवान
बसुधा पर आबाद हो विश्वबन्धुत्व
नफ़रत-भेदभाव का मिटे निशान
सुखाय-बहुजन हिताय का करे शंखनाद
हो जाती दुनिया स्वर्ग समान
ख्वाहिश है अपनी यही
गल  जाता नफ़रत-भेदभाव का आसमान
सच क्या नही कर सकता इंसान ...............नन्द लाल भारती २६.०८.२०१२

Wednesday, August 22, 2012

सदविचार-क्रांति ....

सदविचार-क्रांति
सत्ता की हुंकार हाय रे
दौलत की तलवार
दिल ना जीत सकी
बढ़ी है तकरार
अभिमान की रार
चाहे शक्ति अपरम्पार
सद्कर्म, सच्चाई प्रताड़ित
पर ना मानी हार ..............
मानवता की बात करे
दीन-वंचितों के दर्द हरे
जाति-धर्मवाद का त्याग करे
आत्मा की आवाज़ सुने
ह्रदय में बहुजन हिताय का
सदभाव सजाये
वक्त की  पुकार
सेवा-सुरक्षा का ले व्रत
देश-मानवता हो
जीवन का सार
सद्कर्म, सच्चाई की ना हुई  हार ..............
मन-भेद   दुश्मन है प्यारे
बंधुत्वभाव और विकास का
सदविचार-क्रांति की जरुरत है प्यारे 
राष्ट्रहित-मानवहित में संकल्प दोहराए
सपने होगे साकार
जीओ और जीने दो 
समताक्रांति का होवै आधार ............नन्द लाल भारती २१.०८.2012

Monday, August 20, 2012

सोन चिरैया ....

सोन चिरैया
लूट रही उम्मीदें टूट रहे सपने
मर रही आत्मा की आवाज़
जातिपाति में बंटा बूढ़ा संसार
दुनिया को राह दिखने वाला
ढो रहा भ्रष्टाचार -अत्याचार .......
सत्य भयभीत यहाँ
आतंकित वंचित  इंसान
दुश्मन देश के बने
जातिवाद-भ्रष्टाचार
सुधार की ना  कोशिशे
पुरजोर
कुचलों को कुचलने की साजिशे
अग्नि पथ पर निकल पड़ो
नव नायकों
मिटाने को जातिवाद -भ्रष्टाचार .............
वक्त की नब्ज अब तो समझो
जाति भेद तज दो
भ्रष्टाचार मुक्त राष्ट्र कर दो
राष्ट्र धर्म को सुर दो
बाकी है सम्भावाने
बूढ़े भारत
यानि
सोन चिरैया को नव-रंग दो .......नन्द लाल भारती ...२०.०८.२०१२

Wednesday, August 15, 2012

गीत नया गायें

गीत नया गायें
आओ गीत नया गायें
देश नया बनांये
समानता-सदभावना की
बगिया सजाये
देश  को धर्म बनाए
यही ख्वाहिश प्यारे
यही संकल्प दोहराए
शोषित-वंचित उत्थान
राष्ट्रहित में जीए
और
शान से मर जाए
आओ गीत नया गायें..................
तोड़ दे मन भेद 
की दीवारे
खोल दे बेड़िया सारी
बने विकास के रास्ते
दबे-कुचले की ओर हाथ बढाए
एक बने नेक बने
राष्ट्रहित ध्येय बनाये
आओ गीत नया गायें..................
जाति भेद-धर्मवाद क्या दिया
नफ़रत .............?
यही डंसा गुलामी इबारत लिखा
आज अत्याचार,भ्रष्टाचार है बढ़ा
वक्त की पुकार प्यारे
देश प्रेम और
शांति जीवन का आधार
उत्तर-दक्षिण-पूरब-पश्चिम
एक हो जाए 
भारत माँता विहास जाए
आओ गीत नया गायें..................नन्द लाल भारती ...१५०८.२०१२ 

भारत माँता की जय

भारत माँता की जय आज़ादी का दिन वंदना दिवस
अमर जवान ज्योति तेरी जय हो
जय जय जय
भारत माँता तेरी जय हो .............
राष्ट्रवाद -देशधर्म की जय हो
राष्ट्र भक्तो की जननी 
भारत माँता तेरी जय हो .............
शेष राष्ट्र प्रेम जिनमे
उन महान सपूतो के जय हो
राष्ट्र सेवा-शोषित उत्थान में
आगे  जो उनकी जय हो
भारत माँता तेरी जय हो .............
कर्जदार सदा रहेंगे
अमर शहीदों के हम
सदा कुसुमित वे
माँता के  सपूत महान
जन-जन की शान
जंजीरे तोड़ने वाले
भारत माँता की आन
अमर शहीदों की जय
जय जय जय
भारत माँता  तेरी जय हो ..............नन्द लाल भारती १५.०८.२०१२

Sunday, August 5, 2012

आरक्षण

आरक्षण
संवैधानिक आरक्षण
यानि
अत्याचार,हक़ की लूट
शोषण और जुल्म पर
तनिक मरहम
अच्छी बात तो नहीं
और
अच्छी बात हो सकती है
सामाजिक समानता फले-फूले
सद्भावना हर जबान झूले
असली आज़ादी
शोषित-वंचित आम आदमी के
द्वार पहुंचे
गरीबी,भूखमरी,भूमिहीनता
जातिभेद का अभिशाप मिटे
समान शिक्षा और सबको शिक्षा
रोजगार की हो गारंटी
आरक्षण की फिर क्या आवश्यकता
ख़त्म हो जाए
बड़ी अच्छी बात होगी
जातिवाद के बूढ़े  आरक्षण का
ना नाम रहे
आदमियत का मान रहे
मंदिर प्रवेश,दूल्हा चढ़े घोडी पर
ना विवाद हो कोई
शुद्र गंवार ढोल पशु नारी
ताडन के अधिकारी की
ना रट लगे
सुने, गुने, धुनें
आदमी आदमियत के लिए जिए
आरक्षण की फिर क्या आवश्यकता
मानवता-समानता-सम्पन्नता से
अच्छी और क्या बात होगी .............नन्द लाल भारती ......०५.०८.२०१२

Friday, August 3, 2012

दर्द भरी दुनिया कैसे रास आयी..........?

दर्द भरी दुनिया कैसे  रास  आयी..........?
जीवन संघर्ष, माथे दहकता दर्द
अभाव की चिता पर, सुलगती काया
आँखों का रंग पीला -पीला
तन का रंग काला
डंसती  दिन की बेचैनी
डंसता पूरी रात सन्नाटा
जन्म मरन का हिसाब
जवानी कब बदली बुढौती में
वंचित आदमी की
नहीं मिलता कोइ लेखा जोखा
दुःख भरी जीवन कहानी
तन से झराझर श्रम
आँखों से रिसता पानी
अभाव का पुलिंदा
जीवन सार शोषित वंचित आदमी का
बार-बार डूबते सूरज में
जीवन का   उजास तलाशता
हाय रे चक्रव्यूह कभी ना टूटता
भेद -भ्रष्टाचार का बाण अचूक
वंचित के हक़ पर बार-बार लगता
कुव्यवस्था के पैमाने पर
नीच ठहरता
ना कोई मसीहा वंचित आदमी का अब
ना हक़ का रखवाला
कौन हरे दर्द कौन दे ऊँचाई
शोषित वंचित आदमी को
दर्द भरी दुनिया कैसे रास आयी ...........नन्द लाल भारती ---०३.०८.२०१२