Wednesday, February 29, 2012

शत-शत नमन...........

शत-शत नमन उन्हें
कर दिया न्यौछार
जीवन जिन्होंने
मानवता के लिए............
सहे दर्द,ढ़ोते रहे
मुसीबतों के बोझ
बेहतर दुनिया के लिए
शत-शत नमन उन्हें.............
खुद की खुशियों की ना की
परवाह
बुराईयों को ख़त्म करने के
ढूढते रहे उपाय
खुद का जीवन जिए
कमजोर,शोषित,पीड़ित
वंचितों के लिए
शत-शत नमन उन्हें...............
वंचितों के चहरे पर जो
तनिक मुस्कान
मानवतावादियों के बलिदान की
उजली दास्तान
देव तुल्य वे वन्दन में उठते
हाथ उनके
शत-शत नमन उन्हें.........
दायित्व हमारा भी अब भारी
जियें उनका संकल्प
जो जिए-मरे
मानवता-एकता-समता के लिए
शत-शत नमन उन्हें..........नन्दलाल भारती १.३.2012

Tuesday, February 28, 2012

जीवित तस्वीरें....

ज़िंदगी में मुश्किलें
कहाँ से,कब और कैसे
भान नहीं हो पाता
खड़ा हो जाता
बड़ा सा
सुलगता हुआ वीरान
हम लगने लगते है बौने .
मुश्किलें यानि जीवन सफ़र में
छोटे-बड़े हादशे
दैविक भी हो सकती है
मानव निर्मित हादशे
जो हक़ छिनने के लिए
औकात बताने के लिए
तकलीफ देने के लिए
कंडे से आंसू पोंछ्वाने के लिए
खड़ी कर दी जाती है
बड़ी-बड़ी मुश्किलें
ज्वालामुखी की तरह,
मुश्किलों के दौर में
संयम से खड़े रहने वाले
फूंक-फूंक कर रास्ता
गढ़ने वाले
पार कर जाते हैं
ज्वालामुखी जैसे
मुश्किलों के पहाड़
और उभर जाती हैं
दुनिया के कैनवास पर
ऐसे लोगों की जीवित
तस्वीरें.........नन्दलाल भारती 29.02.२०१२

Monday, February 27, 2012

तर्पण..............

वंचित आदमी,
मरते सपनों का बोझ
उम्मीदों का
खूंटी पर टंगे रहना
हाशिये के लोगो का बस
कर्म ही बनता संबल
युग बीता पर घाव हरी
मन रोता विह्वल
शोषण,जातिभेद दुःख जीवन का
कथा पुरानी
क्या कहूं
चैन छीन लेती घाव पुरानी
हक़ पर वज्रपात
कर्मपथ का दीवानापन
फर्ज का मज़बूत साथ
ले डूबा भाग्य,हक़,कर्मफल
जातीय भेद सकल
उपेक्षित,शोषित बंधा स्वंय
शील के शतदल
जीवन हाशिये के लोगो का
देशहित,सदकर्मो का
समर्पण
साध पुरानी जातिभेद का तर्पण......नन्दलाल भारती 28.02.2012

Sunday, February 26, 2012

पहचान लिया होता...........

एक बार तो जांच लिया होता
पहचान लिया होता
मेरे तन से झरा पानी
मेरी रग-रग उर्वर
हुआ भरपूर लोचन
भाग्य-दुर्भाग्य के फेरे
हिस्से सूनापन
तेरी दौलत मेरे श्रम की उपज
वाह रे किस्मत
मैं
दुखी वंचित और निर्धन
मर गया तेरे नयनो का पानी
एक बार तो जांच लिया होता
पहचान लिया होता
मेरे तन से झरा पानी................
माटी की दीया तन
बाती सा मेरा मन
तेल सरीखे झरता संचित श्रम
नयनो से बहता पानी
बंधी है मेरे सपनों की डोर
कैसे जीवन ज्योति उम्र
और पायेगी
पी कर नयनो का पानी
एक बार तो जांच लिया होता
पहचान लिया होता
मेरे तन से झरा पानी...............
चाहा था समता का सागर
भर दे तुमने भेद की गागर
त्याग-कर्म पूजा के बदले
क्या मिला
अभिशाप कहूं या वर
विरह का दर्द ढ़ोना बना कहानी
एक बार तो जांच लिया होता
पहचान लिया होता
मेरे तन से झरा पानी.........नन्दलाल भारती...27.02.2012

Saturday, February 25, 2012

ना उठे नाम तुम्हारा....

गहन तम घेरत नयन
अवगुंठन का वार करत मर्दन
दानव जड़ काट रहे निरंतर
उठ रहे अब स्वर दबी जुबान
अपनी जहां का ना अब
कोई सूरज ना चाँद
सपने दिखाकर
लूटा जाता हक़ हमारा
सत्ता सुन्दरी के होते दर्शन
हो जाता छल-बल का प्रदर्शन
कुछ समझ में नहीं आता
कब दिखेगा
असली आजादी का
सूरज चाँद सितारा
विसार रहे चेतना देह की
जोड़ लो चाहे जितना धन
घिन्न बरसेगी गेह की
देर हुई बहुत पर उठो
बहुजन सुखाय हो जाये
नेक उद्देश्य तुम्हारा
मानव-राष्ट्र धर्म सद्कर्म के
बनो सच्चे नायक
धरा से ना उठे कभी नाम तुम्हारा.......नन्दलाल भारती 26.02.2012

अवगुंठन-घूँघट
गेह-घर

गहन तम घेरत नयन अवगुंठन का वार करत मर्दन दानव जड़ काट रहे निरंतर उठ रहे अब स्वर दबी जुबान अपनी ज

गहन तम घेरत नयन
अवगुंठन का वार करत मर्दन
दानव जड़ काट रहे निरंतर
उठ रहे अब स्वर दबी जुबान
अपनी जहां का ना अब
कोई सूरज ना चाँद
सपने दिखाकर
लूटा जाता हक़ हमारा
सत्ता सुन्दरी के होते दर्शन
हो जाता छल-बल का प्रदर्शन
कुछ समझ में नहीं आता
कब दिखेगा
असली आजादी का
सूरज चाँद सितारा
विसार रहे चेतना देह की
जोड़ लो चाहे जितना धन
घिन्न बरसेगी गेह की
देर हुई बहुत पर उठो
बहुजन सुखाय हो जाये
नेक उद्देश्य तुम्हारा
मानव-राष्ट्र धर्म सद्कर्म के
बनो सच्चे नायक
धरा से गहन तम घेरत नयन
अवगुंठन का वार करत मर्दन
दानव जड़ काट रहे निरंतर
उठ रहे अब स्वर दबी जुबान
अपनी जहां का ना अब
कोई सूरज ना चाँद
सपने दिखाकर
लूटा जाता हक़ हमारा
सत्ता सुन्दरी के होते दर्शन
हो जाता छल-बल का प्रदर्शन
कुछ समझ में नहीं आता
कब दिखेगा
असली आजादी का
सूरज चाँद सितारा
विसार रहे चेतना देह की
जोड़ लो चाहे जितना धन
घिन्न बरसेगी गेह की
देर हुई बहुत पर उठो
बहुजन सुखाय हो जाये
नेक उद्देश्य तुम्हारा
मानव-राष्ट्र धर्म सद्कर्म के
बनो सच्चे नायक
धरा से ना उठे कभी नाम तुम्हारा.......नन्दलाल भारती 26.02.2012

अवगुंठन-घूँघट
गेह-घर


......नन्दलाल भारती 26.02.2012

अवगुंठन-घूँघट
गेह-घर

गहन तम घेरत नयन अवगुंठन का वार करत मर्दन दानव जड़ काट रहे निरंतर उठ रहे अब स्वर दबी जुबान अपनी ज

गहन तम घेरत नयन
अवगुंठन का वार करत मर्दन
दानव जड़ काट रहे निरंतर
उठ रहे अब स्वर दबी जुबान
अपनी जहां का ना अब
कोई सूरज ना चाँद
सपने दिखाकर
लूटा जाता हक़ हमारा
सत्ता सुन्दरी के होते दर्शन
हो जाता छल-बल का प्रदर्शन
कुछ समझ में नहीं आता
कब दिखेगा
असली आजादी का
सूरज चाँद सितारा
विसार रहे चेतना देह की
जोड़ लो चाहे जितना धन
घिन्न बरसेगी गेह की
देर हुई बहुत पर उठो
बहुजन सुखाय हो जाये
नेक उद्देश्य तुम्हारा
मानव-राष्ट्र धर्म सद्कर्म के
बनो सच्चे नायक
धरा से गहन तम घेरत नयन
अवगुंठन का वार करत मर्दन
दानव जड़ काट रहे निरंतर
उठ रहे अब स्वर दबी जुबान
अपनी जहां का ना अब
कोई सूरज ना चाँद
सपने दिखाकर
लूटा जाता हक़ हमारा
सत्ता सुन्दरी के होते दर्शन
हो जाता छल-बल का प्रदर्शन
कुछ समझ में नहीं आता
कब दिखेगा
असली आजादी का
सूरज चाँद सितारा
विसार रहे चेतना देह की
जोड़ लो चाहे जितना धन
घिन्न बरसेगी गेह की
देर हुई बहुत पर उठो
बहुजन सुखाय हो जाये
नेक उद्देश्य तुम्हारा
मानव-राष्ट्र धर्म सद्कर्म के
बनो सच्चे नायक
धरा से ना उठे कभी नाम तुम्हारा.......नन्दलाल भारती 26.02.2012

अवगुंठन-घूँघट
गेह-घर


......नन्दलाल भारती 26.02.2012

अवगुंठन-घूँघट
गेह-घर

Thursday, February 23, 2012

उठ जाग मुसाफिर

उठ जाग मुसाफिर,हुआ विहान
पूरब की आभा ज्योतिर्मय पहचान,
झरता ज्योतिर्पुंज झरझर
आँख मूंदना अब स्वयं पर
अपराध सरासर,
बाँधो मुन्ठी, तम जीवन कर दूर
विहान नया ज्योतिर्धन भरपूर,
कर ना पाए, तम दमन अब
जड़ से चेतन हो जाओ
शोषित,पीड़ित दीन वंचित सब,
जागो आभा पहचानो
ठान लो तम से समर
जीवन हो ज्योतिर्मय,पूरा सफ़र
ना कर प्यारे मन खिन्न
मत बटो भिन्न-भिन्न,
उठ जाग मुसाफिर
चौखट नया विहान,नयी आभा
सकल ज्योतिर्धन जोड़ेगी
तम का कर दो मर्दन
ज्योतिर्मय आभा काल के माथे सज
जय जयकार मचाएगी
उठ जाग मुसाफिर
कारीरात फिर ना आएगी................नन्दलाल भारती /24.02.2012

Wednesday, February 22, 2012

वेदना मिलती विदाई...

आह ये कैसा जहां.?
जहा वेदना मिलती विदाई
झराझर श्रमकण बहते
दीन-दरिद्र अछूत तक कहते
अश्रू दल झरते जल दल जैसे
जहां का अधियारा लागे कसाई
आह ये कैसा जहां.?
जहा वेदना मिलती विदाई...........
जीवन चलता आतंक की साया
विपन्नता निरंतर भयावह
तालीम दहली भेद की छाया
दबे-कुचलों की सुधि किसको आयी
आह ये कैसा जहां.?
जहा वेदना मिलती विदाई.............
भूख ढीठ पालथी मारे पसरी चौखट
तिरछी निगाहें डंसती सबकी
शोषित-पीड़ित जीवन आस की परछाईं
आह ये कैसा जहां.?
जहा वेदना मिलती विदाई...........
लूटा श्रम ठगी कमाई
शोषित का जीवन रथ पतझर
शोषण,उखाड फेकने की
बूढ़ी जिद सरपट अपने पथ
पद-दलित हार-हार
जीतने होड़ रहा लगाई
आह ये कैसा जहां.?
जहा वेदना मिलती विदाई.......
हे जहां के मालिक
करुण कथा तो बांच लेता
जीवन बसंत लौटा देता
सही ना जाती वेदना
वापस ले लो अपनी थाती
कब तक भरे सांस आस की बाटी
हे दुनिया के रखवाले
तेरी दुनिया रास ना आयी
आह ये कैसा जहां.?
जहा वेदना मिलती विदाई..............नन्दलाल भारती 23.02.2012

Tuesday, February 21, 2012

ना जाने क्यूं....?

ना जाने क्यूं....?
आजकल आदमी का खून
खौलता नहीं
सामाजिक कुरीतियों
बुराईयों,अत्याचार
अनाचार भ्रष्टाचार
देखकर........
चलते-चलते देखना बंद
कर देती हैं आँखे
और कान बंद कर
देता है सुनना जैसे
सच यही अनदेखी
और
अनसुनापन
भ्रष्टाचार का बन
गया है जनक..........
आज आंसू का मोल
नहीं रहा कराह पर
आदमी का दिल नहीं
पसीजता
कैसा दौर ....?
आज लोग हो गए कैसे.?
आदमी खेलने का
सामान हो गया है.........
मतलब के लिए आँख में
धूळ झोकना
मान-सम्मान,इज्जत,जजबात
और
हक़ से खेलना
आज आदमी का
शौक हो गया है
ये कैसा दौर
शुरू हो गया है......
कल से खेलता आदमी
दिल से पथरीला
कल-पुर्जा हो गया है
क्या खून खौलेगा....?
क्या दिल पिघलेगा......?
आदमी आदमियत भूल गया है
और
आज के आदमी का
जीवन सार
बस स्वार्थ रह गया है...........नन्दलाल भारती 22.02.2012

Monday, February 20, 2012

अधिकार............

ना बची अपनी धरती
ना अपना आसमान
छली नसीब
पसीने में छलका सपना
ख्वाहिशे जिगर में
पलती हैं
पर बार-बार
रौंद जाता है कोई
खुली आँखों में
सपने सजाने वाला
हिम्मत नहीं हारता है,
जानता है
पहचानता भी है
उम्र का कतरा-कतरा
रिस रहा है
घाव में लथपथ
दर्द में सरोबर
कर्मपथ पर अग्रसर
सोचता है
कब होगी ख्वाहिशे पूरी
कब मिलेगा....?
हाशिये पर फेंके
जल-जमीन से वंचित
शोषित उत्पीडित को
समानता का अधिकार.............नन्दलाल भारती...21.02.2012

Sunday, February 19, 2012

सपनों का महल...

उठने लगी है अंगुलियाँ
खाकी और खाकी पर
जन रक्षक भक्षक
बनने लगे हैं
सफेदी की आड़ में
कला कारोबार होने लगा है
धर्मग्रंथो की कसमे
अब झूठी लगने लगी है............
हवाओं का रुख
बदला-बदला लगने लगा है
आदमी आस्तीन में
साप पालने लगा है
उजियारे पर
अधियारे का अत्याचार
बढ़ने लगा है
कौन सुने फ़रियाद
निरापद को दंड मिलने लगा है............
आस को फांस
थक कर चूर हो रहे पाँव
राहें दिन पर दिन
घुमावदार होती जा रही है
विश्वास और आस्था पर
मर मिटने वालो को
ठगा जा रहा है
हाशिये के आदमी का जीवन
थमा कर्म की नींव महान
इसी पर कर्मयोगी के
सपनों का महल टंग रहा है............नन्दलाल भारती/21.02.2012

**************************************************************
///शुभ शिवरात्रि जय हो भोले भंडारी......मित्रो हार्दिकशुभकामनाएँ कबूल करे हमारी....///

Saturday, February 18, 2012

खुद पर खुद का भरोसा.

कल घायल था,
नयनो में थी
बाढ़ भरपूर प्यारे
गफलत रंजिशो के दौर हजारों
जिद कुछ अच्छा करने की
कुछ लोगो को पसंद ना था
आज भी नहीं है
खैर
कमजोर को आगे बढ़ते,
कुछ अच्छा करते
कौन देखना चाहता है...............?
उम्र के बसंत पतझर बने
जीत हार बनती रही
जिद जीतने की मरी नहीं
संघर्ष-जिद ने गढ़ा आसमान
वक्त ने दिया मान...................
सच है कल अच्छा ना गुजरा
आज भी रह-रह कर
पुराना घाव रिस जाता है
दर्द दहक जाता है
आज भी कुछ ख़ास नहीं
गुजर रहा है......................
भयभीत नहीं
भले कल लहूलुहान था
आज दर्द से उठ रहा है ज्वालामुखी
पतझर हुए बसंत का
दहकता सबूत भी है
जीने के लिए इतिहास बनने के लिए
साथ-साथ चलने वाला
बचा है
खुद पर खुद का भरोसा............नन्दलाल भारती.....19.02.2012

Friday, February 17, 2012

सोचता हूँ .............

कुछ लोगो को शोषित,वंचित
गिरे अथवा गिराए हुए लोगो को
उठता हुआ देखकर
ना जाने क्यों
उन लोगो की ऐंठने
बलखाने लगती है
जली हुई रस्सी की तरह.......
कुछ लोगो को हजम
नहीं होता
गिरे,संभलते हुए लोगो की
तनिक तरक्की
लोग करने लगते है तानाकशी
और
शुरू हो जाती हैसाजिशे..........
त्याग कठिन श्रम के सहारे सपने सजाते
दबे कुचालो को देखकर
शरंड,जलौका जैसे लोगो के
पेट में दर्द शुरू हो जाता है
गफलत और रंजिशो का
शुरू हो जाता है दौर...........
ऐसे अमानुष लोग जो करते है
दंवरुवा/danwaruwa की खेती
सदमानव कैसे हो सकते हैं...........
मुझे गिरे हुए लोगो को
संभलता,उठता
खोया-पाने का प्रयास
लालसा जगाता है
सोचता हूँ कितने
गिरे हुए है वे लोग
कि सताए,शोषित वंचित
गिरे हुए,दबे-कुचलों की ओर
हाथ नहीं बढाते
उनकी दुर्दशा देखकर
उदास हो जाता हूँ...........नन्दलाल भारती...18.02.2012

सोचता हूँ .............

कुछ लोगो को शोषित,वंचित
गिरे अथवा गिराए हुए लोगो को
उठता हुआ देखकर
ना जाने क्यों
उन लोगो की ऐंठने
बलखाने लगती है
जली हुई रस्सी की तरह.......
कुछ लोगो को हजम
नहीं होता
गिरे,संभलते हुए लोगो की
तनिक तरक्की
लोग करने लगते है तानाकशी
और
शुरू हो जाती हैसाजिशे..........
त्याग कठिन श्रम के सहारे सपने सजाते
दबे कुचालो को देखकर
शरंड,जलौका जैसे लोगो के
पेट में दर्द शुरू हो जाता है
गफलत और रंजिशो का
शुरू हो जाता है दौर...........
ऐसे अमानुष लोग जो करते है
दंवरुवा/danwaruwa की खेती
सदमानव कैसे हो सकते हैं...........
मुझे गिरे हुए लोगो को
संभलता,उठता
खोया-पाने का प्रयास
लालसा जगाता है
सोचता हूँ कितने
गिरे हुए है वे लोग
कि सताए,शोषित वंचित
गिरे हुए,दबे-कुचलों की ओर
हाथ नहीं बढाते
उनकी दुर्दशा देखकर
उदास हो जाता हूँ...........नन्दलाल भारती...18.02.2012

Thursday, February 16, 2012

भूमिहीन मजदूर...................

वो दुखती दास्तान
भूमिहीन मजदूर की पहचान
भूमिहीन खेतिहर मजदूर
चीरते धरती की छाती
बहाते पवित्र गंगा
उगाते हीरे-मोती,
करते दुनिया की भूख दूर
भूमिहीन खेतिहर मजदूर................
कहने को तो मजदूर देवता
वही भूखमरी के शिकार
चौखट पर तंगी के तांडव
औलादे अशिक्षित-अल्पशिक्षित
डराता मरते रोज-रोज
मरते सपनों का भार...........
टुकुर-टुकुर ताकते शासन की राह
चल पड़े कोई तरक्की की बयार
गूंजता खाली-खाली शोर
गरीब की मुट्ठी में कहाँ जोर
हाडफोड़ मेहनत,लागे
जीवन दंड कठोर...........
मुश्किलों भरा जीवन
अँधेरे में धंसता जा रहा
भूमिहीन मजदूर
पुश्तैनी कारोबार का ना नाम
ना कोई मान
भूमि आवंटन से जागी थी
सुख से जीने की आस
अवैध कब्जाधारियों ने
ड़ाल दी फांस
वादे और घोटाले बड़े-बड़े
भूमिहीन मजदूर गरीबी के
दलदल में खड़े..................
सपनों के सौदागर
लखपति-करोड़पति-अरबपति
हो रहे
भूमिहीन मजदूर गरीब
रोटी कपड़ा मकान को
तरस रहे
भूमिहीन खेतिहर मजदूरों की
कौन सुने परेशानी
दहकती सांस,पसीजता तन
रोता मन
भूमिहीन खेतिहर मजदूरों की
यही शादियों पुरानी कहानी...........नन्द लाल भारती/ 17.02.2012

Wednesday, February 15, 2012

दुर्भाग्य का दाग.....

वाह क्या बात होती
पीड़ित को न्याय
तालीम और श्रम को
हक़ का अमृत मिल जाता
सच हकसा-पिआसा
अदना भी
बरगद की छांव
बन जाता
और दूसरो के लिए.....
अदना बड़े-बड़े
मुश्किलों के पहाड़
ढ़केल कर
पीठ से चिपके पेट से
जुडी कमर सीधी कर पाता..........
एहसास होता है अदने को
पराई दर्द का
इसी एहसास की नीव पर
दम भरता है
बरगद की छांव बनने का............
मुश्किलों के बीच
श्रम की बैसाखी के सहारे
हताश अदना पैर जमाये
खड़ा होना सीख लिया है..........
जुआड़बाज
नहीं मान रहे छिनने से
अधिकार
बेख़ौफ़ नाप रहे
अदने के हिस्से का
आसमान............
अफ़सोस,अदने का भाग्य
लूटा जा रहा है
दुर्भाग्य का दाग
माथे मढ़ा जा रहा है
यही है अदना,छोटा होने का
रिसते जख्म का दंड
चाहे छोटा क्यों ना
करता रहे
बड़े-बड़े नेक काम.............नन्दलाल भारती/16.02.2012

Tuesday, February 14, 2012

उठ रहा भरोसा .......

आज गरीबो में छन रहा
पतझर का दौर ऐसा
किस पर करे भरोसा
जब चमन का बहारो से
उठ रहा भरोसा .......
मनभेद का घुन
विश्वास को चट कर रहा
जड़ हो रही खोखली
आकाश में गिध्दों का बसेरा
खादी और खाकी से
उठ रहा भरोसा...
आदमी स्वहित में दहाड़ -दहाड़
आदमी-आदमी के बीच
विष बीज बो रहा
आम-आदमी इन्तजार में जी रहा............
नफ़रत का जकड़ा जाल ऐसा
ना बचा पैमाना कोई
ना योग्यता ना अनुभव
बँट रहा ताज
हो जंगल राज जैसा..............
डंसने लगा चाँद-सूरज को
केतु -राहू का घेरा
ऐसे दौर में अदना किस पर
करे भरोसा
वह तो बस इन्तजार में
जी रहा है.............
बेचैन हाशिये का आदमी
कब छिन ले कोई सबल
पाँव के नीचे की जमीन
बचा-खुचा टूट रहा भरोसा
सत्ता सुन्दरी होती मैली
हाशिये का आदमी
बाट जोह रहा..
इन्तजार में जी रहा है.............
नन्दलाल भारती/ 15.02.2012





Monday, February 13, 2012

हजम नहीं हुआ.......

दूर दृष्टि,पक्का इरादा,
कड़ी मेहनत
और
जनसेवा के सद्भाव से
उठी आगे बढ़ने की ललक
कुछ लोगो को
हजम नहीं हुई...........
पेट में भूख लेकर
पसीने की धार से
सींचे गए सपने
दुनिया के कैनवास पर
उभरने लगे थे
ये निखर कुछ लोगो को
हजम नहीं हुआ...............
शोषित का संघर्ष
विपत्तियों-मुश्किलों के मुंह से
अर्जित तालीम,संघर्ष और
अनुभवों के ललहाते अंकुर
कुछ लोगो को
हजम नहीं हुआ.......
लगने कमजोर की तरक्की
अछूत सरीखे
उठने लगे साजिशों के
ज्वालामुखी
मटियामेट करने के लिए
क्योंकि कुछ लोगो को
छोटे लोगो की तरक्की
हजम नहीं हुआ करती.........
छोटा आदमी कब तक
हलक से उपजी ललक की
हवा पीकर
षडयंत्र का दर्द सहता
श्रम, सद्कर्म,वफ़ा
और इमान के सहारे
भेद भरी दुनिया में
आखिरकार छला गया
एकलव्य की तरह
श्रम,सद्कर्म,वफ़ा,ईमान
खुली आँखों के सपने
और नसीब भी
पर नहीं छल पाया कोई
प्रारब्ध
भले ही शोषित के पसीने की
स्वर्णिम आभा
कुछ लोगो को
हजम नहीं हुई हो...............नन्दलाल भारती/14.02.2012

गढ़ते हैं दोष.......

बित रहा जहां उम्र का मधुमास
वही हो आज वज्रपात
दिख रहा भयावह
उजड़ा कल
सबल के हाथ कुंजी
दीनो को छिनने की
कलाकारी आती नहीं............
गंवा कर मधुमास
दिल पर दहकते घाव
पा चुके हैं
निचोड़े गन्ने जैसा तन,
गरीब की नसीब पर
नाग जैसे बैठे लोग
कहते हैं
शोषितों को ईमानदारी आती नहीं.........
कमजोर खाता हैं
ठोकरें
संभल कर चलते-चलते
गरीबों के दुश्मन कहते हैं
श्रमिको को समझदारी
आती नहीं..............
मजदूर/शोषित मिट्टी को
अपने श्रम से जो
बनाता सोना
श्रम के लूटेरे उसी पर
गढ़ते हैं दोष
कहते हैं
वफादारी आती नहीं.......नन्दलाल भारती/ 12.02.2012

Saturday, February 11, 2012

ज़िंदगी के प्यार का नाम दे.....

सत्य को जय
संतोष को धन मान ले
मुश्किलों को ज़िंदगी के
प्यार का नाम दे
ठोकरों को जीत का
प्रवेश द्वार मान ले ............
दिल में समानता का भाव
इंसानियत को धर्म मान ले
बोलने को वचन
चाँद-तारे जैसे
शूल गड़े पाँव प्यारे
फूलो की बौछार मान ले................
कट जायेंगे मुश्किलों के दिन
उम्मीद को बस उम्र देना
मन की दिवार को
खुला द्वार देना.............
ज़िंदगी का खेल निराला
कही शहद कही विष का प्याला
जीवन को उफनती नदियाँ की
धार मान लेना
हार भी गए तो क्या..?
हार को भी जीत मान लेना..........नन्दलाल भारती/ 12.02.2012

Friday, February 10, 2012

हित में उतर तो जाओ.............

अरे देवदूत दीवानों
खुद को पहचानो
मरे सपनों का बोझ ना उठाओ
मारे गए सपनों का भी मातम
ना मनाओ..............
भूल जाओ जख्म पुराने
खुली आँखों में सपने
सजाओ
ज़िन्दगी का सफ़र सुहाना
उसे अजमाओं................
जमाना कब हुआ अपना
सदा रहा बेगाना
विरोध के तूफ़ान में
डंटे रहने से नाम हुआ रोशन
ज़माने ने छिना
कमजोर का आसमान
गैर का ताज सजाया खुद के माथे
यारो ना घबराओ
कबीर -रविदास बुध्द को देखो
सोच का पंख लगाओ............
झुकेगा आसमान एक दिन
लूट के खिलाफ डंट तो जाओ
लडाई हक़ की हिम्मत जुटाओ...............
ना डरो ना करो परवाह
तूफ़ान राह अपनी निकल जायेगा
जाति भेद का त्यागो मोह
तुम निडर हो जाओ
पक्के इरादे पर अटल हो जाओ.........
नाम तुम्हारे जड़ देंगे
दुआओं के अनमोल रत्न
दीन-दुखियों के काम तो आओ
ईसा,बुध्द,वाहे गुरु को देखो
सदमार्ग पर निकल तो जाओ..........
दीन-वंचित तुम्हे ना भूला पायेगे
सदप्यार का अर्ध्य चढायेगे
उनका दर्द अपना बनाओ
उनके हित में उतर तो जाओ.................नन्दलाल भारती/11.02.2012

Thursday, February 9, 2012

वक्त करेगा आरती...............

समझही-बुझही सबही
करैं स्व-हित विधि नाना
मानही जग दीप-जीवन दान
करैं उजास जान थे
जग जाना................
नाम अजर दीप
कल्याण करहि उजियारा
बिन भेद झरे दीप
झराझर
भला कहै संसारा...........
मानुष जीवन दीप सम माना
सद्कर्म भल मानुष
मौन दुधिया रोशनी सामना.............
बरसहि धूप भर-भर जीवन
भर जाए पाँव बड-बड छाले
जीवन में विष पिए
परमार्थ के मतवाले
भेद-भाव कि नहीं छल पाए
मलिन छाया
जनून यही बोवै उजाले................
नर से नारायण जग माना
दीन-दरिद्रों के काम जो आये
जीवन न्यौछावर सारा
दरिद्रनारायण की सेवा जिनका
बुध्द उनके बनते सहारा
अप्पो दीप भवः जीवन सारा..................
पल-पल घटती उमरिया
वंचित शोषित के जीवन
बोवै बहारा
हे दीन दरिद्रो की दुनिया
रोशन करने वाले
दरिद्र नारायण पूजेगा
वक्त करेगा आरती तुम्हारा..........नन्दलाल भारती... 10.02.2012

जीती उम्र का खिताब

मुट्ठी बांधे आया
हाथ फैलाये जाना है
जिसको
क्या लेकर जायेगा
नाम उसी का
जुगनू जैसा चमकेगा
जिसने पर-सेवा का
काम किया होगा.................
दुनिया धिक्कारेगी
उसी को
भले रहा हो कंस या
हिटलर जैसा ताकतवर
दुःख-दर्द ना बांटा हो
शोषण-उत्पीडन का
काम किया होगा............
जीवन फुलवारियों का जहां
सुगंध बचेगी उसी की
नेकी का काम,आंसू पोंछा हो
उखड़े पाँव को
दुश्वारियां ना दिया हो
नाम उसी वक्त भाल पर होगा.............
दुःख दर्द,गफलत-रंजिशो के दौर
जीवन में आते जाते है
ऐसे दौर में भी उगती रहे
कोपले
सजती रहे सपनों की
क्यारियाँ
होंठो से खेलती रहे किलकारियां
वही सच्चा-सफल
जीवन पथ का राही होगा...............
मानवता-समता की खेती की जिसने
मधुर यांदे होगी जिगर उसके
मन में गूंजेगी शहनाई
उखड़े पाँव के काम आया जो
बांटा जीवन में खुशियाँ
जीती उम्र की पारियों का
खिताब
उसी इंसान के नाम होगा........नन्दलाल भारती... 09.02.2012

Tuesday, February 7, 2012

पतझर हुआ मधुमास उनका.....

पतझर हुआ मधुमास उनका
ऊपर हाथ नहीं जिनके,
फ़र्ज़ पर कुर्बान
कर्मयोगी,उच्च शिक्षित
भले रहे ,
वाह्य जगत में प्रतिष्ठित
दुश्वारियां जुड़ती साथ
उनके.....................
मरते सपने--आह-आंसू
तड़पन वीरान इन्तजार
हिस्से उनके..................
सदभावना-सदाचार के दीवाने
मिलता नफ़रत,अपजस,
दुत्कार उनको.......................
हो जाता फूस समान
मधुमास उनका
दमन की चिंगारी
दहन करती जीवन उनका...............
उम्मीदवारी में नाम तो था
दबंग-पहुँच-सत्ताधारियों ने
छिन लिया है हिस्से का
आसमान
जो शोषित-वंचित-हाशिये के लोग है
उनका...............नन्दलाल भारती/ 08.02.2012

गाँव की मांटी का सोंधापन बहुत याद आता.............

उम्र का अर्धशतक करीब
शहर के जीवन का रजत वर्ष हुआ पूरा
वो अपना गाँव,नीम,पीपल,बरगद की छांव
रिश्तेदारी-नातेदारी, पंछियों का कलरव
और पहली बारिश में
खेत से उठा चन्दन सा
नथुनों में बसा सोंधापन नहीं भूला................
आधुनिक महलों से पटे शहर में
ना तो सच्ची इन्सानियत झलकती
ना सच्ची सदभावना
गाँव की अमराईयाँ और
अंगड़ाइयों का सुख तो दूर तक नज़र नहीं आता..........
हिचकियाँ आज भी आती हैं
अर्थ हिचकियों का शहर में नहीं रहा
गाँव की याद भी सताती है
कौआ मुडेर पर नहीं बैठता,शहर में
नहीं अतिथि देवो भवः की दस्तक................
गाँव जाने पर आज बड़े-बूढ़े
हकसे-पिआसे आते हैं
कुशलता पूछने
शहर में मुसीबतों के पल लोग, नज़र फेर लेते हैं
शहर की चकाचौंध,
बड़े बड़े हेलोजनो की दूधिया रोशनी
अंधेरी रात में दिन का एहसास पर सूनी गलियाँ
इसके बाद भी वो गाँव की डेबरी कहाँ आज तक..............
शहर की तरक्की भले चूम रही हो गगन
गाँव की आहो-हवा करती दिल मगन
गाँव में सामाजिक बुराईयों का पसरा है डेरा
अछूत-वंचितों अपवित्र कुएं का पानी
रिसते जख्म का डंसता फेरा................
काश मिट जाता
सामाजिक बुराईयों का दहकता दाग
गाँव अपना धरती का स्वर्ग हो जाता
शहर तो माया का दरिया पल में
रूप बदल जाता
शहर की भीड़ में आदमी तनहा रह जाता
आज शहर में भी
गाँव की मांटी का सोंधापन बहुत याद आता............नन्दलाल भारती/ 07.02.2012

Sunday, February 5, 2012

prarabdh की आभा उसी के हिस्से........

कर्म ने ज़िंदगी के पन्नो पर
उकेरे है,प्रारब्ध के हिस्से
अभावों की इबारत
लिखे हैं भूख के किस्से...........
ज़िंदगी बस चलते रहना
लाचारियाँ,कमजोरियां
कही सुलगता दर्द
मुश्किलों की चाकी आदमी पिसे
रार,ना हार बस हौशले
जश्न भी आते हैं जीवन में हिस्से...................
ज़िंदगी सांस का नाम
सुख-दुःख, धूप-छांव के किस्से
कही शहनाई किसी के हिस्से...................
शोले का दरिया
कही मशहूर
शबनम की छुअन के किस्से
कसे कमर,उम्मीदों के पर
आम आदमी की कामयाबी के
अमर हुए है किस्से.............
दुनिया अँधियारा और उजियारा
तम का गम अदने के हिस्से
इंसानियत का सिपाही
सम-सद्कर्म का राही रहा जो
प्रारब्ध की आभा
उसी के हिस्से................नन्दलाल भारती 06.02.2012

Saturday, February 4, 2012

कर्मयोगी सपूत सच्चे सिपाही की तरह...

राहे ज़िंदगी रोशन ना हुई
अभागा बना दिया गया हो जिसको
सपने बेमौत मरे हो
श्रम पूजा खंडित हुई हो
डराता हो उजाला अँधियारा की तरह
कट रही हो उम्र पगले की तरह...........
जम गए हो आस में, नयनो के नीर
बुत बनकर रह गया हो
कल उपजाऊ था आज भी
बंजर धरती कहा गया हो
ढ़ो रही हो ज़िंदगी
जीवित शरीर लाश की तरह
आदमी बिता रहा ज़िंदगी
आजीवन सजा की तरह...........
भेद का विष भाग्य कैद हो गया हो
आदमी हाशिये का
जिसके कुएं का पानी अछूत हो गया हो
सारे जहां से अच्छा
वही दोयम दर्जे का रह गया हो
आदमी धरा का बसंत की तरह
वही हो रहा पतझर की तरह................
अराध्य हो गया पत्थर जहां
मन तरस आँखे बरस रही वहा
भूमिहीन-वंचित-शोषित-श्रमिक देवता
करता है जगत का विकास
पसीने से नहाती हो धरती जिसके
उगलती हो अन्न मोती की तरह
दुनिया वालो कुछ करो
भूमिहीन-वंचित-शोषित-श्रमिक देवता के
विकास के लिए
कर रहा पग-पग पर विषपान
कर्मयोगी निभा रहा फ़र्ज़
अटल सपूत सच्चे सिपाही की तरह...................नन्दलाल भारती 05.02.2012

Friday, February 3, 2012

राहे सफ़र................

राहे सफ़र ज़िंदगी का
बाप का शौर्य माई की छांव
डगमगाते पाँव
सफ़र पर निकलने की ललक
एक हाथ बाप दूजे माँ की
अंगुली का सहारा पाया
फिर शुरू राहे सफ़र
पाँव पड़े छाले भी
और पले-बढे अरमान.................................
राहे सफ़र की अजीब है दास्ताँ
राहे सफ़र ऐसा
छूटे सहारे के हाथ
बनते-बिगड़ते रहे निशान
राहे-सफ़र दिया ज़िंदगी का ज्ञान............................
बिना मतलब पूछता नहीं कोई
राहे -जहां
देखता नहीं रुकता नहीं
गिरा कर आगे बढ़ जाता
धकिया कर कोई कर देता किनारे
हो जाता जीवन-जंग का भान................................
कठिन हो भले पर
यही राहे जहां बनती वरदान
कदम बढे चाहे जिस सफ़र
डरता चौराहे का गोलचक्कर
भेलख पड़े तनिक कोई छल जाता
तड़प उठते रिश्ते सारे
मिलन की आस, विरह कोई दे जाता..........................
मुसाफिर हारता कहाँ
भले हो जाए फना
सफ़र-सफ़र है
जोड़ने की अजीब दास्तान..............................
भले छलते रहे रूप बदल-बदल
सफ़र में पड़े चौराहे के गोलचक्कर
राहे सफ़र सुखद सफलताओ का
दौर भी आता सजता सिर मौर
छूट जाते काल के गाल पर
पक्के निशान........................नन्दलाल भारती 04.02.2012

Thursday, February 2, 2012

आदमीबहुत बड़ा हो गया....

जिस-जिस राह पाँव पड़े प्यारे
लहुलुहान हुए पाँव हमारे
छांव ठहरा तनिक,बबूल की लगी
यकीन किया जिस पर
उसी बेदर्द ने साज समझ लिया
मरते सपनों की थी
शव यात्रा कंधो पर,
पुर्जा-पुर्जा तन का दहल गया
मन बहुत तड़पा
आँखों को भान तो था
बाँध ना टूटा
कुछ लोग बेहतर साबित
होने के लिए
तरह-तरह के हथियार अजमा रहे थे
शरीर ताप,होंठ अपना सुलग रहा था
कंठ आह-आह उगल रहा था
आँखे पथराती रही
कराह से उपजा दर्द
स्वांग लग रहा था
अरमानो की होली दाहक रही थी
उधर जाम के रंग दीवाली मन रही थी
तपस्वी फ़र्ज़ पर अड़ा था
पल-पल विषपान कर रहा था
चीख-पुकार सुने कौन...........?
छोटे लोग गूँज रहा था
मधुमास पतझर हो रहा था
भाग्य बदनाम हो चूका था
तपस्वी लक्ष्य पर तटस्थ था
आखिरकार दुआ कबूल हुई
चमत्कार हो गया
जमे आंसू कनक हो गए
कांटे फूल बन गए
बबूल की छांव,पीपल की हो गयी
मरे सपने जी उठे
गुमानी निगाहों को
सांच को आंच कहा का
बोध हो गया
आदमी छोटा था कल
आज बड़ा..............बहुत बड़ा हो गया......नन्दलाल भारती/ 03.02.2012

Wednesday, February 1, 2012

वक्त ने गुनाह कभी नहीं माफ़ किया.....

कमजोर जानकर
गैरो का हक़ चुराकर
नेक का नकाब ,लगाने वालो
ज़िंदगी को अभिशापित
कर दिया..........................
खुदा का तोहफा ज़िंदगी
जहर बना दिया
तोहफा मानने वालो ने
जहर को अमृत मान लिया.................
वक्त कहाँ किया नाइंसाफी
छिनी विरासत, चेहरा बदलने वालो ने
वक्त ने वसीयत करार दिया...............
सांस लेने का सहारा लेने वालो
गौर से सुनो
धकेला मुश्किलों के दलदल
अदनो ने इतिहास रच दिया
आँख का मरा पानी तुम्हारी
तुमने नसीब लूट लिया......................
बदले मुखौटे तरह-तरह के तुमने
मौंका-बेमौँका किये विष की खेती
तुम्हारी पहचान करना था
कठिन
लूट-झूठ का खेल कब तक चलता
वक्त ने झीना पर्दा कर दिया................
इंसान के वेष शैतान
इंसान की ज़िंदगी कर पतझर
ज़िंदगी थी बसंत तुमने
बहार छिन लिया................
जीओ और जीने दो
खुदा के प्यारे बन्दों
ज़िंदगी खुदा की बख्शीश
कमजोर जानकार
जिसने तबाह किया
खुदा गवाह,छिन ताजो-तख़्त
वक्त ने गुनाह कभी नहीं माफ़ किया.........................नन्दलाल भारती/ 02.02.2012