Wednesday, March 31, 2010

एक मिनट का मौन

सकूं ही नहीं यकीं भी तो है
तुम पर
हो भी क्यों न ?
यही तो कमाई है विश्वास की ।
पहले या बाद में
मैं रख लूँगा या तुम
दो मिनट का नहीं
एक मिनट का काफी है ।
हादशो के शहर में आज ही तो बाकी है
कल क्या होगा प्यारे ?
ना तो हम जानते ना तुम ।
आदमी के बदमिजाज से जान ही गए हो
भ्रष्टाचार, आतंकवाद, क्षेत्रवाद,धर्मवाद जातिवाद
खाद्यानो की मिलावट, दूषित वातावरण
और दूसरी साजिशे
कब मौत के कारन बन जाए ।
दोस्त न तुम जानते हो ना हम
एक बात जान गए है
ये साजिशो की ज्वालामुखी
कभी भी जानलेवा साबित हो सकती है ।
काश ये ज्वालामुखी
शांत हो जाती सदा के लिए
परन्तु विश्वास की परते
जम तो नहीं रही है ।
हां सकूँ और यकीन तो है दोस्त
तुम मेरी और मैं तुम्हारी
मौत पर
दो की जगह एक मिनट का
मौन तो रख ही लेगे
कोई तूफ़ान क्यों ना उठे
और फिर भले ही हम खो जाए ब्रह्माण्ड में
दुनिया की अमन शांति के लिए ...........
नन्दलाल भारती
३१-०३-2010

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