Sunday, January 13, 2013

आगे आओ तुम ................

आगे आओ तुम ................
मत पाकर मतवाले हो गए 
हम पाषाणों को मसीहा मान गए
उम्मीदों की गठरी भारी बाँध  ली
रहनुमाई करेगे वो
लोकतंत्र के पहरेदार वो
नामे ढो  रहे जो ...........
मसीहा बने रहने की ढोल पीट-पीट
आग बो रहे है वो
महंगाई अत्याचार,भ्रष्टाचार ,जातिवाद
बलात्कार भले  घोंट दे दम
नहीं फूलता कभी उनका दम ...............
बस इतना करते है
आम आदमी के लहू -पसीने से
संरक्षित किले से बाहर निकलते है
बयान देते है .............
अगले बयान तक किले में  रहते है
बयान भले उनका कर दे
मर्यादा का चीरहरण .............
फर्क नहीं पड़ता कोइ उन पर
वे और उनके लोग
सुरक्षित किले में बने रहते है
फर्क पड़ता तो उनका भी लहू
खौल उठता  ......................
सर कलम होने ,शहीद के शव में
भरने की सच्चाई पर
कूद पड़ते जंग में .........
पर नहीं कुसी पर बने रहना
उनको आता है
स्विश  बैंक स्व-हित उनको भाता है
नवजवानो कमान थामो तुम
देश को जरुरत है तिम्हारी
राष्ट्रहित-जनहित में आगे आओ तुम ..........डाँ नन्द लाल भारती 13.01.2013

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