Saturday, February 16, 2013

पुलकित स्व-मान

पुलकित स्व-मान 
दुःख आज है वही इन्सान
जागृत ह्रदय जिसका
जीवित जिसमे
वफ़ा और स्व-मान
करता नहीं डंसने का काम
भरे जहां में दुखी वही
सच्चा इन्सान ।।
लोग कुछ कहते कुछ करते
चेहरा बदलने वाले
दींन  जानकार दर्द परोसते ।।
विधना के बागी
सत्ता के  मतवाले स्व-हित में
विष बोते है
कहते जो करते वो
समय के पुत्र वो
फ़र्ज़ पर फना होना
समय पुत्रो को आता है
वफ़ा ईमान इन्हें भाता है ।।
चेहरा बदलने वालो की
महफ़िलो से
दर्द का दरिया उफनता है
फ़ना होने वालो की ओर
सह लेता है सब दुःख
पी लेता है दर्द
भले की उम्मीद में
क्योंकि लोकहित में
दुखी इन्सान को जीना -मरना भाता है
तभी तो समय का पुत्र कहता है ।।
आज भी आंसू झरते है झराझर
यही शब्द ब्रह्म बनाते
लोकहित में फ़ना होने वाले
कर्म पथ पर बढ़ते है
कलेजे में ठुकी कील का दर्द
पाँव में शूल धंसते है
दीवाने  है ये
तभे तो वक्त के आर-पार बसते है ।।
मुश्किलें पे-पल सताती है
गुटबाजी का दौर भी चैन से
जीने नहीं देता है
भेद की चासनी जवां दर्द
घाव गहरा कर देता है ।।
जालिम है लोग दैत्य समान
होंठ पर मधु का फैलाव
दिल की गहराई में जहर रखते है
खुद को खुदा बनते  है
ऐसे लोगो के ताप
कैसे कम होगा दुःख
गैर को तबाह करने वाले
करते है दीन के अरमानो का खून ।।
अमनुषो  की शिनाख्त
समय पुत्रो को करने आता है
फ़ना के बदले दुःख पाता है
समय का पुत्र है
दहकता दर्द भी पी जाता है
ज़िन्दगी जहर पर जीने आता है ।।
वक्त दिया है मान
परमार्थी  समय का पुत्र महान
दुःख की दरिया में डूब -डूब भी
पुलकित रहता है स्व-मान ।।
डॉ .नन्द लाल भारती 17.02.2013

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