Saturday, July 6, 2013

नसीब के कातिल/कविता

नसीब के कातिल/कविता
नसीब के कातिलों नसीब के कातिलों ने
ना जाने क्यूं ....?
मेरी मौत की कसम है
 निभायी .....।
फ़ना हुआ मैं अपनी
वफ़ा पर यारों
कातिलो ने मेरे अरमानो की  बस्ती में
आग है लगाई .....
पेट में थी पल  रही भूख
खुली आँखों में थे
जीवित सपने रचे .......
हौशले के  ताप से
सपनों में सूरत थी नाजर आयी .......
वाह रे कातिल निगाहें
क़त्ल की सजा सुनायी ........
फना हुआ मैं और
मेरे सपने अपनी जहां में
नफरत भरे अपने जहां में
यारों कोई  तालीम काम ना आयी .......
मरते सपनों की  शैय्या थामे
निरापद दर्द पी रहा हूँ
फ़ना होने के सिवाय
नाकामयाब तरकीब हर कोई
नसीब के कातिलो ने
ऐसी कसम निभायी
मरता रहा जी-जी कर
सपने मरते रहे अपने यारों
बेमतलब तालीमें  और तरकीबे
नफ़रत बोने वाले लोग लगते है
कसाई
हाय रे अपनी जहां के कातिल  लोग
तुम्हारी वजह से नसीब उम्र ना पाई .....
.डॉ नन्द लाल भारती 07.07.2013



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