Saturday, July 5, 2014

जातिवाद का नरपिशाच/कविता

जातिवाद का नरपिशाच/कविता 
मै कोई पत्थर नहीं रखना चाहता 
इस धरती पर 
दोबारा लौटने की आस जगाने के लिए 
तुम्ही बताओ यार 
योग्यता और कर्म&पूजा के 
समर्पण पर खंजर चले बेदर्द 
आदमी दोयम दर्ज का हो गया जहां 
क्यों लौटना चाहूंगा वहाँ 
रिसते जख्म के दर्द का ,जहर पीने के लिए 
ज़िन्दगी के हर पल
दहकते दर्द, अहकती सांस में
भेदभाव के पहाड़ के नीचे
दबते कुचलते ही तो बीत रहे है
ज़िन्दगी के हर पल
भले ही तुम कहो भगवानो की
जन्म-भूमि,कर्म भूमि है ये धरती
प्यारे मेरे लिए तो नरक ही है ना
मानता हूँ शरद,हेमंत शिशिर बसंत
ग्रीष्म वर्षा ,पावस सभी ऋतुएं
इस धरती पर उतरती है
मेरे लिए क्या ?
आदमी होकर आदमी होने के
सुख से वंचित कर दिया जाना
क्या मेरी नसीब है
नहीं दोस्त ये इंसानियत के दुशमनो की साजिश है
आदमी होने के सुख से वंचित रखने के लिए
तुम्ही बताओ किस स्वर्ग के सुख की,
अभिलाषा के लिए दोबारा लौट कर आना चाहूंगा
जहा आदमी की छाती पर
जातिवाद का नरपिशाच डराता रहता है
ज़िन्दगी के हर पल ………………
डॉ नन्द लाल भारती 05 .07.2014

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