Monday, December 8, 2014

सजा /लघुकथा 
मई की तपती लू का आतंक था। नए नए आये प्रमुख अफसर अवध प्रताप सिंघ का चैम्बर बर्फीला हो रहा था। खैर होता भी क्यों नहीं ऊपर  पंखा, खिड़की पर  एसी जो टंगा था।अचानक अवध प्रताप सिंघ विद्यांशु को चपरासी रईस के माध्यम से बुलवाये। विद्यांशु  हाजिर हुआ। 
प्रमुख अफसर -कब से काम कर रहे हो   ?
अट्ठारह साल से। 
एक ही जगह  अट्ठारह साल से। 
जी प्रमोशन नहीं हो रहा  मै तो चाहता हूँ पर  प्रमोशन के साथ ट्रांसफर। विद्यांशु  बात आगे बढ़ाते हुए बोला एक अनुरोध है साहब।
क्या अवध प्रताप सिंघ बोले ?
मेरे मरते हुए सपनो को उम्र दे सकते है साहब।
वो कैसे ……?
प्रमोशन के लिए अनुशंसा कर। 
इतना सुनते ही  साहब को जैसे  करैत ने डंस लिया।  वे एसी की तरफ मुंह कर बोले क्या किया है। 
पीजी के साथ प्रशासन से संबंधित  डिग्री डिप्लोमा भी।  
तुम्हे प्रमोशन क्यों चाहिये। 
नौकरी भविष्य  लिए कर रहा हूँ।  साहेब सभी के हो रहे है। स्नातक टाइपिस्ट  जनरल मैनेजर तक  बन गए । ना जाने क्योंमेरे साथ अन्याय हो रहा है ?
शिकायत कर  रहे हो प्रबंधन की । आरक्षित वर्ग  हो ना।इसीलिए नेतागीरी  कर रहे  हो  
जी आरक्षित वर्ग का  तो हूँ नहीं कर रहा हूँ।  
नेताजी सुनो  मिनट में बाहर करवा सकता हूँ. जानते हो  ये विभाग तुम्हारे लोगो के लिए नहीं बना  है। अपने लोगो को देखो खाने को  अन्न नहीं पहनने को वस्त्र नहीं,आज भी लोग पास खड़े तक नहीं होने देते ।तुम तो दफ्तर में बैठे हो बाबूगिरी कर रहे हो , सर्वसुविधा भोग रहे हो।  तुम नसीब वाले हो तुम्हे नौकरी मिल गयी है,तुम्हारे बच्चे अंग्रेजी स्कूल में पढ़ रहे है. क्या इतनी तरक्की कम  है। अवध प्रताप सिंघ नरभक्षी सिंह की तरह दहाड़ते हुए बोले ?
आगरा नरेश  नौकरी आप और जैसे  सभी कर रहे है पर मुझे शोषित क्यों ? विद्यांशु बोला।  
नरभक्षी सिंह की तरह दहाड़ते हुएअवध प्रताप सिंघ साहब बोले छोड़ दो नौकरी सजा लग रही है तो। तुम्हारी सजा का जिम्मेदार कौन  है। 
आप और आप जैसे सामंतवादी लोग।
 डॉ नन्द लाल भारती 04.12 .2014  

  

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