आदमियत का गीत /कविता
मैं अदना अपनी जहां का सिपाही बस
मेरी चाह नहीं मैं
राजपाट का मालिक बन जाऊं
वैभव के शीर्ष बैठ इतराऊं,………
बस अदने की चाह इतनी सी
सब गले मिले,सबको गले लगाऊं
ना करे कोई विष की खेती,
ना डँसे जातिभेदका विषधर
संग संग चलो आगे बढ़ो
अपनी चाह यही प्यारे
अपनी जहा गाए,मैं भी सुर मिलाऊँ
सब गले मिले,सबको गले लगाऊं………
जाति भेद किया बहुत बिनाश
अमानुषता के दाग को धो डाले
जहाँ के माथे ,समता का रंग रच डाले
अपनी जहां का इसी में कल्याण
यही गुहार लगाऊं
अपनी चाह नहीं कि मैं
वैभव के शीर्ष बैठ इतराऊं………
अप्पो दीपो भवः का भान
देश धर्म अपना
राष्ट्र धर्मग्रन्थ हो संविधान
राष्ट्र और जनहित में फ़र्ज़ निभाये
समतावादी समाज का करे शंखनाद
क्या छोटा क्या बड़ा
भेदभाव तज सब गले मिले,
सबको गले लगाऊं ………
चाह नहीं वैभव के शीर्ष बैठ इतराऊँ
समता सदभावना की बयार
जातिवाद का ना हो विवाद
भारतवासी यही पहचान यही बताऊँ
आदमी हूँ
आदमियत का गीत सुनाऊँ………
डॉ नन्दलाल भारती 21 .12 2015
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