Monday, October 3, 2011

हाथ उठ रहे हजारो

हाथ उठ रहे हजारो
निरापद गलत करार
दिया गया
योग्यताओ को
सूखी घास का
ढेर मान लिया गया
अमानुष लोग
जाम टकराते हुए
आग उगल देते ।
वे वही है
जो अपने दर्द को
दर्द अमझाते है ,
गैर के घाव पर ,
खार मलते हैं
अमानुष इंसानियत की
दोहाई देते हैं ।
वफ़ा-ईमान गरीब जानकर
झूठा लगता है उन्हें
नरपिशाच निकले
इंसान समझा जिन्हें ।
नूर-बेनूर कर दिए
गिध्द अरमानो को
नोंच-नोंच चोंथ दिए।
नसीब-बदनसीब हो गयी
खुदा गवाह
पद-दौलत लूट गयी
मानवता का चीर-हरण
हो गया ।
गिरे हुए लोग
ऊपर-बहुत ऊपर उठ गए
उठना था जिन्हें
उनके हिस्से की जमीं
लूट गयी ।
लहूलुहान गिरता गया
अरमानो की अर्थी
गाजे-बाजे से निकली गयी ।
दीवाने की हिम्मत
नहीं टूटी
खुद की परछाईं के सहारे
अमानुषोके चक्रव्यूह को
चीरता चला गया
दूसरे जहां में
मान मिला
जय-जयकार हुई ।
चौथे दर्जे के जानकार
दंड
अमानुषो की गलती थी पर
कहाँ पछतावा
निरापद गलत नहीं था
साबित हो गया यारो
जनाब हाल ये है
आज
दुआ में हाथ उठ रहे हजारों ............नन्द लाल भारती ...०४.१०.२०११





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