Monday, November 12, 2012

विकास की गंगा...

विकास  की गंगा
ये  नसीब के लूटेरो
तुम्हारा दिल भी तो धड़कता होगा
जमीर की भट्ठी पर तुम्हारा
दिल धधकता होगा ................
खुदा का प्रतिनिधि था
तुमने अपनी सत्ता कायम कर
आदमी को खंडित कर
कदम ना बहकते तुम्हारे
ना उठता नफ़रत का तूफान
ना हम बर्बाद होते
ना भभकते आशियाने हमारे ........
होश उड़ जाते अपनी जहाँ में
नफ़रत की बोयी  तुम्हारी
आंधिया देखकर .........
चकाचौंध की आज की दुनिया में
वंचितों की दुनिया दंग  है
 दूर कोसो तरक्की का रंग है
श्रम झरझर पसीने में तर
हाथ एकदम तंग है .......
गुनाहगार तुम्ही जाती भेद
और नफ़रत बोने वालो
भृकुटिया तनेगी
वंचितों के हाथ जब मिलेगे
अपनी जहां खुशियों में नहा उठेगी
कैद नसीब आजाद होगी
तब विकास  की गंगा
वंचितों  के द्वार से बहेगी ....नन्द लाल भारती ..13.11.2012

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