Sunday, December 9, 2012

गुहार

II गुहार II
कैद हुई  नसीब ,लूट गए अधिकार
नफ़रत की दुनिया में,
छाती उतान किये तकरार .............
बदलते चहरे ख़ूनी पर लागे लुभाने
श्रृंगार जैसे करे गिरगिट सुहाने ............
ये कैसी दुनिया आदमी कर
आदमी का सुख खुद को श्रेष्ठ जाने .......
निरापद हुआ लूटी नसीब का मालिक
देख तमाशा दुनिया का
अछोत उसी को माने ..............
दिल रोया फूट-फूट रास ना आया
भेद भरा संसार
नफ़रत की आंधी छलता भ्रष्ट्राचार .............
जातिवाद/धर्मवाद ने कर दी
इंसानियत की गंगा मैली
सत्ता सुन्दरी नहीं बची दूध की धुली ................
शोषित-आम-जीवन संघर्षरत
जवान बस उसकी आस
समता-सदभावना उज्जवल
जीवन की सांस ...............
करबध्द गुहार ना हो अब
भेदभाव ना अत्याचार
बांटे सदभावना का उपहार..............नन्द लाल भारती 08.12.2012

 

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