Tuesday, March 12, 2013

शब्दबीज

शब्दबीज 
 भरी जहां में वफ़ा  बदनाम हुई यारों
ख्वाब की सजी थी क्यारी
सरे-आम   कुचल  गयी यारो 
दिल की धड़कने अभी  है बाकी  
यही  है   जीवन  साथी 
दिल टूटा हजारो बार
जुड़ते रहे  तिनके उड़ाती रही बयार
ना जाने क्यों गुनाहगार मान लिया
अश्रु बीज  गिरे सरेराह ,पनाह ना लिया
अर्ज है खुदा सर झुके बस तुम्हारी दुआरी
भेद  भरी जहां वालों का एहसान कैसा
ठग लिए जो नसीब हमारी
तमन्ना बची है आखिरी
बस यूं हि  चलता रहूँ
जन हित मे बोता रहूँ
सद्भावना के शब्द बीज
भेद भरे जहां में
इतनी शक्ति देना विधाता
भेद भरा जहां ना सुहाता ....डॉ नन्द लाल भारती 1 2 .0 3 .2 0 1 2

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