Saturday, March 16, 2013

क्या गुनाह .............

हाथ की लकीरों का क्या गुनाह
श्रम को यहाँ नहीं मिलती पनाह ,
नसीब भ्रमजाल खेल पुराना
रिसता  जिसके तन से तरतर
लहू बनकर पानी ,
हाशिये का आदमी कहता
भेद भरा जमाना ,
ठगी का चलता खेल निरंतर
वंचित आदमी आँका जाता कमतर,
सद्कर्म -तालीम नहीं सुहाती
छोटे लोग घाव भयावह ,
दर्द के तूफान बार-बार दे जाती ,
अमीरी-गरीबी भगवान की दें नहीं
साजिशो का दोष सही
जातिवाद-बदनसीबी या कहे गरीबी
नसीब का दोष नहीं है कोई ,
कसूरवार आदमी हक़,धन भंडार ,
जल जमीन पर पनाग की भाँति
कुण्डली मारे है जोई ..................डॉ नन्द लाल भारती 17 .0 3 .2 0 1 3  

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