Friday, August 2, 2013

देश धर्म हो हमारा/कविता

 देश धर्म हो हमारा/कविता 
 कैसे होगा असली आजादी का ,
सपना साकार ,
कब बसेगी खुशहाली शोषित के द्वार ,
दे रहा माँ के आँखों को आंसू ,
आमजन का हक़ लूट रहा भ्रष्टाचार ,
नफ़रत जातिवाद का हो रहा प्रसार
वक्त बुरा आओ करे विचार ,
गिध्द नज़र पडी है
टूट रही सब्र की घड़ी है ,
लोकतंत्र लहोलुहान आह भर रहा ,
लोकतंत्र के रक्षक भ्रष्टाचार ,
विष बो रहे ,
ईमानदारी, वफ़ा सत्य परेशान
हाड-फोड़  कराह रहा शोषित इंसान ,
विज्ञानं का युग पर ना मिटा जाति  भेद ,
ना लूटी नसीब हो सकी आज़ाद ,
अपनी जहां में कैसे होगा विकास ,
क्या यही था आजादी का मंतव्य
स्वार्थ में नहाये रक्षक ,भूल  गए गंतव्य ,
शोषण, अत्याचार,बलात्कार,भ्रष्टाचार
नियति में समाया
खून के बदले आज़ादी का मान घटाया ,
आओ करेविचार ,
आंम -आदमी शोषित वंचित का हो विकास
समता-सद्भावना राष्ट्रहित का गूंजे नारा
भारत के लोगो जागो  अब जाति धर्म द्वेष नहीं ,
देश धर्म हो हमारा …। डॉ नन्द लाल भारती 02.08 .2013




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