Saturday, August 24, 2013

दर्द /कविता

दर्द /कविता
बयानबाजी कंपा देता बार-बार मन
अपनी जहां में सालता रहता दर्द,
लोग कोइ साप कोइ नागनाथ ,
खुद की कसम कोई मौन सा
घुसा  देता  जानलेवा दर्द………
साझा की गुस्ताखी भी
 दे देता दर्द ,
ना साझा की मौन स्वीकृति
मन भी मान गया
दूर तक पहुंचे ललकार
जुड़े इन्कलाब
ऐसा औजार हाथ आ गया। ……
औजार क्या कलम सुख-दुःख का
अपना साथ सच्चा ,
सुनने -कहने का सामर्थ्य पक्का ………
मन भी हो जाता हरा-भरा
उठ जाता छाती से दर्द
सकून मिलाता वैसे जैसे
छनकर मिलता टुकड़े  धूप का सुख
मौसम हो  हाड़फोड़ सर्द………… डॉ नन्द लाल भारती 25.08.2013  


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