Monday, April 14, 2014

नास्तिक/कविता

नास्तिक/कविता
माना कि अपनी जहां   में
नास्तिक हो गया हूँ ,
खैर नास्तिक होने की पुख्ता
वजहें भी तो हैं ,
 आस्तिक होने से मिला क्या……?
यही ना छल ,दंड ,भेद ,
सुलगता हुआ जख्म
दहकता हुआ दर्द ,
अहकता हुआ मन ,
झंझावाते अनेको ,छुआछूत
जातिवाद ,नफ़रत
उत्पीड़न ,आदमी होने के सुख से बेदखली
कैद नसीब के मालिक होने का दर्द।
आस्तिक हूँ, आस्थावान हूँ
 मानवता के प्रति ,
दर्द के रिश्ते के प्रति
देश  कायनात के प्रति
और
एक ईश्वरीय सत्ता के प्रति भी
सच यही मेरी  नास्तिकता है
अपनी जहां में
प्रज्जवलित है जो
अप्पो दीपो भवः की तेल बाती से ..........
डॉ नन्द लाल भारती 15 .04  2014.



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