Saturday, November 1, 2014

आगे आगे जाना है /कविता

आगे आगे जाना है /कविता
हमारी ख्वाहिश है
बस इतनी सी
हम सब अपनी जहां में
समतावादी बने रहे बस
असंभव तो नहीं था
पर सम्भव नहीं हो सका 
आज तक
झाँक चुका हूँ उतर कर दिलो में 
पर घाव के अलावा कुछ नहीं मिला
मुखौटाधारी  
दूर के रहे या आसपास के
अंतड़ियों की ऐठनो से
उठती रहती है आग उनके
यही है अपनी जहा का दुर्भाग्य 
भूल जाते है लोग
हम है माटी के पुतले
माटी का है चमत्कार
देश की माटी के है कर्जदार
देश की माटी का तिलक लगाओ
संविधान को राष्ट्रीय धर्मग्रंथ बनाओ
अप्पो दीपो भवः बुध्द की वंदना
जीवन अमृत हर दिल से उठे संवेदना
सदभावना का व्यवहार करे
ऐसी भावना जनकल्याण करेगी
हाशिये के आदमी का उध्दार करेगी
चमत्कार है अपनी माटी में
विकास है लोकतंत्र में
चमत्कार है संविधान में
आओ हम सब साथ चले
समता -सदभावना की राह बढे
कसम है लोकतंत्र के सिपाहियों 
देश के सपूतो
स्वार्थ से दूर फ़र्ज़ पर फना हो जाना है
कर्म -पथ पर आगे आगे जाना है
डॉ नन्द लाल भारती 14 .10 .2014

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