एक बरस और॥
माँ की गोद पिता के
कंधो
गाव की माटी
और
टेढ़ी-मेढ़ी
पगडण्डी से होकर
उतर पड़ा
कर्मभूमि में
सपनों की बारात
लेकर ।
जीवन जंग के
रिसते घाव है
सबूत
भावनाओ पर वार
घाव मिल रहे बहुत ,
संभावनाओ के
रथ पर
दर्द से कराहता
भर रहा उड़ान ।
उम्मीदों को मिली
ढाठी
बिखरे सपने
लेकिन संभावनाओ में
जीवित है
पहचान
नए जख्म से दिल
बहलाता
पुराने के
रिस रहे निशान ।
जातिवाद-धर्मवाद
उन्माद की धार
विनाश की लकीर
खिंच रही है
लकीरों पर
चलना
कठिन हो गया है ,
उखड़े पाँव
बंटवारे की लकीरों पर
सद्भावना की
तस्वीर बना रहा हूँ ।
लकीरों के आक्रोश में
जिन्दगिया हुई
तबाह
कईयों का
आज उजड़ गया
कल बर्बाद हो गया ,
ना भभके ज्वाला
ना बहे आंसू
संभावना में
सद्भावना के शब्द
बो रहा हूँ ।
अभिशापित
बंटवारे का दर्द
पी रहा
जातिवाद-धर्मवाद की
धधकती लू में ,
बित रहा
जीवन का दिन
हर नए साल पर
एक साल का
और
बूढा हो जाता हूँ ........
अंधियारे में
संभावनाओ का दीप जलाये
बो रहा हूँ
सद्भावना के बीज ।
संभावना है
दर्द की खाद
और
आंसू से सींचे बीज
विराट
वृक्ष बनेगे
एक दिन........
पक्की संभावना है ,
वृक्षों पर लगेगे
समानता सदाचार
सामंजस्य
और
आदमियत के फल
ख़त्म हो जायेगा
धरा से
भेद और नफ़रत ।
सभावना के
महायज्ञ में
दे रहा हूँ आहुति
जीवन के पल-पल का
संभावना बस..........
सद्भाना होगी
धरा पर जब
तब
ना
भेद गरजेगा
ना शोला बरसेगा
और ना
टूटेगे सपने
सद्भाना से
कुसुमित हो जाए
ये धरा ,
संभावना बस
उखड़े पाँव
भर रहा उड़ान ,
सर्व कल्याण की
कामना के लिए
नहीं
निहारता
पीछे छूटा
भयावह
विरान...........
माँ की तपस्या
पिता का त्याग
धरती का गौरव रहे
अमर
विहसते रहे
सद्कर्मो के निशान
संभावना की उड़ान में
कट जाता है
मेरी जिनगी का
एक बरस
और
पहली जनवरी को .....नन्द लाल भारती
Thursday, December 23, 2010
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