नववर्ष ॥
वक्त के बहाव में ख़त्म हो रही है
उम्र
बहाव चाट कर जाता है
हर एक जनवरी को
जीवन का एक और बसंत ।
जानता हूँ ,
नहीं रूक सकेगा बहाव
काम आने लायक बना रहू
औरो के
नववर्ष से पक्की है आस
बची खूंची की सुबह
झरती रहती है
तरुण कामानाये ।
कामनाओं के
झराझर के आगे
पसर जाता है मौन
खोजता हूँ
बिते संघर्ष के क्षणों में
तनिक सुख ।
समय है कि
थमता ही नहीं
गुजर जाता है दिन
करवटों में
गुजर जाती ही
राते ......
नाकामयाबी कि गोंद में
खेलते-खेलते
हो जाती है
सुबह
कष्टों में भी दुबकी रहती है
सम्भावनाये ।
उम्र के बसंत पर
आत्ममंथन कि रस्साकस्सी में
थम जाता है जैसे
समय ।
टूट जाती है
उम्र
कि बाधाये
बेमानी लगने लगता है
समय का प्रवाह
और
डसने लगते है
ज़माने के दिए घाव
संभावनाओ कि गोंद में
अठखेलिया करता
मन अकुलाता है
रोज-रोज कम होती उम्र में
तोड़ने को बुरईयो का
चक्रव्यूह
और
छूने को तरक्की के
आकाश
नववर्ष से ऐसी है आस ।
पूरी हो आमजन की
कामनाये
बुराईयो पर ठनके
चाबुक
शपथ,
राष्ट्रीय सम्पति का ना होवे
नाश ........
नववर्ष मानवीय समानता का बने
मधुमास ...
आमजन के मन बजे झांझ
होवे सांझ सुहानी
चमकता रहे विहान
बूढ़े माँ-बाप कि बनी रहे छाया
दीन-नारायणी कि
राह अड़े ना कांटे ...
नववर्ष द्वार-द्वार सौगात बांटे
हो सके तो द्वार आना
तेरे आगमन पर हो जाऊँगा
एक साल का
और बूढ़ा
ह्रदय कि गहरी से गुज़ेगी
शहनाई
नववर्ष तेरा आना हो
मंगलकारी
दीन-धनिखा
एक स्वर में
एक दूजे को बांटे
तुम्हारे आगमन कि बधाई............नन्द लाल भारती
Tuesday, December 28, 2010
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