कर्मपथ का राही ॥
कर्मपथ का राही विह्वल
बोये श्रम बीज
सींचे पसीना धवल ।
दुश्मन रौंदते
जुबान उगलती शोले ,
कर्म पूजा उद्देश्य
जिसका
दण्डित मुंह जब-जब खोले ।
हित पर मंजती तलवारे
कैद अधिकार की चाभी
देती आंहे ।
कर्म योगी बौड़म
पीकर आंसू धवल
बढ़ता-कराहता
पत्थर पर लकीर
खीचने को विह्वल ।
जानता है
आंसू देने वाला
हकदार को
ढाठी देने वाला
नरपिशाच
छिलता घाव
देता दर्द नया
पल-पल ,
नेक कर्म योगी ,
कर्म पथ का राही
वक्त का साज
काल के गाल पर
मान उज्जवल ॥ नन्दलाल भारती ...२५.०१.2011
Saturday, February 5, 2011
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