Sunday, February 20, 2011

आशीष की थाती

आशीष की थाती ...
माँ ने कहा था
मेहनत की कमाई खाना
काम को पूजा
फ़र्ज़ को धर्म
श्रम को लाठी समझना
यही लालसा है
धोखा फरेब से दूर रहना ।
लालसा हो गयी पूरी मेरी
जय-जयकार होगी
बेटा तेरी
चाँद-सितारों को गुमान होगा
तुम पर
वादा किया था
पूरा करने की लालसा
चरणों में सिर
रख दिया था
माँ के हाथ उठ गए थे
लक्ष्मी,दुर्गा और सरस्वती के
परताप एक साथ मिल गए थे ।
आशीष की थाती थामे
कूद पड़ा था
जीवन संघर्ष में
दगा दिया दबंगों ने
श्रम-कर्म-योग्यता को
न मिला मान
गरजा अभिमान
उम्मीदे कुचल गयी
योग्यता को वक्त ने दिया
सम्मान।
माँ का आशीष माथे ,
संभावना का साथ
हक़ हुआ लूट का शिकार
पसीने की बूँद
आँखों के झलके आंसू
मोती बन गए
विरोध के स्वर
मौन हो गए
माँ की सीख
बाप का अनुभव
पत्थर की छाती पर
डूब उग गए
उसूल रहा मुस्कराता
कैद तकदीर के दामन वक्त ने
सम्मान के मोती मढ़ दिए ।
हक़-पद-दौलत
आदमी के कैदी हो गए
ज़िंदगी के हर मोढ़ पर
आंसू दिए
संभावना को ना कैद कर पाई
कोंई आंधी
बाप के अनुभव
माँ के आशीष की थी
जिसके पास थाती ....नन्द लाल भारती ...१५.०२.२०११






1 comment:

  1. बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति..

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