सर्वधर्म ॥
सर्वधर्म सदभाव की अलख
जगाने दो ,
द्वेष-विद्रोह अब मिट जाने दो ,
परमार्थ की ज्योति
जलाने दो,
सर्वधर्म के गीत गाने दो .............
दिल में नव एहसास
घर कर जाने दो ,
पूरे देश को एक हो
जाने दो
नैतिकता के राह जाने दो
सर्वधर्म के गीत गाने दो .............
भेद की सारी दीवारे
ढह जाने दो
मन-भेद की खाई
पट जाने दो
सदभाव के फूल
खिल जाने दो
सर्वधर्म के गीत गाने दो .............
सुख-दुःख धुप-छांव को
एक हो जाने दो
शांति का सुख बरस
जाने दो
सर्वकल्याण की प्रीति
निभाने दो
सर्वधर्म के गीत गाने दो .............
हर दिल में सदप्रेम की
आग लग जाने दो
मन गंगा जमुना सा
हो जाने दो
राष्ट्र -धर्म की बात
बढ़ जाने दो
सर्वधर्म के गीत गाने दो .............
हर देवालय से देश-हित का
आगाज हो जाने दो
सर्व शांति-सर्व सुख की लहर
दौड़ जाने दो
वसुधैव कुटुम्बकम की
ज्योति जलाने दो
सर्वधर्म के गीत गाने दो .............
भेद की दीवार तोड़
मानवता को विह्स
जाने दो ,
गिरिजाघर से हरिकीर्तन की
धून उठ जाने दो
मंदिर से अजान
मस्जिद से
इश्वर अल्लाह तेरे नाम का
उदघोष हो जाने दो
सर्वधर्म के गीत गाने दो .............नन्द लाल भारती
Thursday, April 28, 2011
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
बहुत अच्छी रचना।
ReplyDelete