Monday, February 13, 2012

गढ़ते हैं दोष.......

बित रहा जहां उम्र का मधुमास
वही हो आज वज्रपात
दिख रहा भयावह
उजड़ा कल
सबल के हाथ कुंजी
दीनो को छिनने की
कलाकारी आती नहीं............
गंवा कर मधुमास
दिल पर दहकते घाव
पा चुके हैं
निचोड़े गन्ने जैसा तन,
गरीब की नसीब पर
नाग जैसे बैठे लोग
कहते हैं
शोषितों को ईमानदारी आती नहीं.........
कमजोर खाता हैं
ठोकरें
संभल कर चलते-चलते
गरीबों के दुश्मन कहते हैं
श्रमिको को समझदारी
आती नहीं..............
मजदूर/शोषित मिट्टी को
अपने श्रम से जो
बनाता सोना
श्रम के लूटेरे उसी पर
गढ़ते हैं दोष
कहते हैं
वफादारी आती नहीं.......नन्दलाल भारती/ 12.02.2012

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