Tuesday, February 14, 2012

उठ रहा भरोसा .......

आज गरीबो में छन रहा
पतझर का दौर ऐसा
किस पर करे भरोसा
जब चमन का बहारो से
उठ रहा भरोसा .......
मनभेद का घुन
विश्वास को चट कर रहा
जड़ हो रही खोखली
आकाश में गिध्दों का बसेरा
खादी और खाकी से
उठ रहा भरोसा...
आदमी स्वहित में दहाड़ -दहाड़
आदमी-आदमी के बीच
विष बीज बो रहा
आम-आदमी इन्तजार में जी रहा............
नफ़रत का जकड़ा जाल ऐसा
ना बचा पैमाना कोई
ना योग्यता ना अनुभव
बँट रहा ताज
हो जंगल राज जैसा..............
डंसने लगा चाँद-सूरज को
केतु -राहू का घेरा
ऐसे दौर में अदना किस पर
करे भरोसा
वह तो बस इन्तजार में
जी रहा है.............
बेचैन हाशिये का आदमी
कब छिन ले कोई सबल
पाँव के नीचे की जमीन
बचा-खुचा टूट रहा भरोसा
सत्ता सुन्दरी होती मैली
हाशिये का आदमी
बाट जोह रहा..
इन्तजार में जी रहा है.............
नन्दलाल भारती/ 15.02.2012





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