Monday, February 20, 2012

अधिकार............

ना बची अपनी धरती
ना अपना आसमान
छली नसीब
पसीने में छलका सपना
ख्वाहिशे जिगर में
पलती हैं
पर बार-बार
रौंद जाता है कोई
खुली आँखों में
सपने सजाने वाला
हिम्मत नहीं हारता है,
जानता है
पहचानता भी है
उम्र का कतरा-कतरा
रिस रहा है
घाव में लथपथ
दर्द में सरोबर
कर्मपथ पर अग्रसर
सोचता है
कब होगी ख्वाहिशे पूरी
कब मिलेगा....?
हाशिये पर फेंके
जल-जमीन से वंचित
शोषित उत्पीडित को
समानता का अधिकार.............नन्दलाल भारती...21.02.2012

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