Sunday, March 11, 2012

फ़र्ज़ पर कुर्बान..........

श्रम का अवमूल्यन हो रहा है
ईमानदारी,वफादारी और
समर्पण भाव पर
अंगुलिया उठती रहती है
वह जनता था तो बस
फ़र्ज़ पर मर मिटना......
थक हार कर जब वह
घर लौटता तो
साथ आती कई मुश्किलें
और चिंताएं भी
जो डराती रहती
और छीन लेती नींद भी
वह बैठ जाता गुनने-धुनने
परिणाम.....कर्मपूजा महान
और वह सब विसारकर
तैनात हो जाता फ़र्ज़ पर .......
उम्र के बसंत
खोते रहे वक्त की गर्त में
उसके हिस्से का आसमान
छिनता चला गया
अब वह जान गया था कि
भेद और शोषण भरे जहां में
नसीब कैद कर ली जाती है
फिर भी
वह चला जा रहा था
अपनी मस्ती में
फ़र्ज़ पर कुर्बान होने .....नन्दलाल भारती १२.०३.२०१२

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