Saturday, October 20, 2012

कर्म पथ............

कर्म पथ
मन रट लगाए है अलविदा कह दू
उस जहां को जहा नहीं मिल रहा
सम्मान नहीं कर्म को मान
वर्णिक छाप जेठ की तपती
धूप  समान-----------------
आत्मा तिखारती रहती
अँधेरे को चीरने को कहती
बार-बार कहती अटल बने रहो
कर्म पर यकीन करो
सदमार्ग   पर चलो
संघर्षरत भले ही रहो
ना हार मानो ना अलविदा कहो .................
कहती है आत्मा
आँख,कान ,मुंह बंद कर लेने से
शोषण,अत्याचार ,जातिवाद,हक़ की लूट
भ्रष्ट्राचार पर  ताले  तो नहीं लग जायेगे
ना ही पोषित करने वाले
चुल्लू भर पानी में डूब मरेगे
डूब मरना होता तो
ये साजिशे होती क्या .........?
वचनबध्द हो गया  हूँ
आत्मा की आवाज़ संग
वरना कब का अलविदा कह दिया होता
उस ठांव को  जहा  उठती है
भेद की लपटें ,
जहां झराझर झर  रहा  है
उम्र का बसंत
कमेरी दुनिया का आदमी
तरक्की से दूर
ठगा महसूस कर रहा हूँ ........................
उत्पीड़न शोषण,  जातीय  भेद में
सुलगता हुआ
उम्मीद में  जीवन  सफ़र पर चल रहा हूँ
आत्मा की आवाज़  ताकत बन चुकी है
यही ताकत पहचान बनने  लगी है
यही है थाती जीवन सफ़र की
और
कर्म पथ पर डटे रहने की---------------नन्द लाल भारती 21.10.2012
 

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