Friday, October 12, 2012

इंसानियत को धर्म बनाये ...........

इंसानियत को  धर्म बनाये
यकीन की जड़े मजबूत होने लगी है
आदमी आदमी से दूर होने लगा है
नजदीकियां है तो बस
अपने से अपने कुनबे से
गोत्र से अपनी बिरादरी से
कुछ धर्मान्धता से भी
यही है आज भी
आदमी होने का सच ..............
मीठे जहर की तरह
चेहरा बदलने का हुनर
डंसता जा रहा है
सचमुच आदमी होने का
असली सुख
हाशिये के आदमी के जीवन में
भरता जा रहा है
भेद, अभाव और निर्धनता ........
आँखे पथराई जा रही है
तरक्की से दूर फेंके आदमी की
सच लगने लगा है
आदमी को अभावग्रस्त,अछूत
बनाए रखने की साजिश है
वर्णिक भेदभाव का  विभाजन ................
ये कैसा विभाजन है
जहां इंसानियत  को मिलती है फटकार
बहुजन हिताय बहुजन सखाय  से
नहीं कोइ सरोकार
इंसानियत का धर्म मांगता है
समानता से जीओ और जीने दो का अधिकार ......
बदलते वक्त में लगाने लगा है
ना रार ना तकरार की जरुरत है
एक अदत मानवीय समानता की जरुरत है
यही तो है
दुनिया की सभी तरक्कियो की चाभी ..................
ये दुनिया वालो आओ
इंसानियत को  धर्म बनाये
राष्ट्र का हित सधे
बहुजन हिताय बहुजन सुखाय की राह जाए ...नन्द लाल भारती ...13.10.2012

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