Monday, May 20, 2013

मुक्कमल आज़ादी /kavita

मुक्कमल आज़ादी ना मिली  मुकम्मल आजादी
ना खुली ना मिली तारक्की की राहें
अपनी जहां को यारो .....
मुश्किलों के दौर संघर्षरत जीवन
झर श्रम बीज निरंतर
मन की बगिया में बची अपने
सपनों की हरियाली ............
ठगों के मनो में मनो खोट
भय भेद भ्रष्टाचार सताती चोट
हौशलो के दम फूलने लगे है
अपनी जहां के ................
शोषितों का हल बुरा
झेलते दोहरी मार
जातीय रुढ़िवादी  समाज में उपेक्षित
अर्थ की तुला पर ठहरे व्यर्थ सदा
संविधान किया पंगु
अपनी जहां में .................
शोषितों का जीवन
अग्नि परीक्षा का दौर सदा
सपनों की सवारी जीवन उनका
ना मिली मुक्कमल आज़ादी
आजाद देश में गुलाम रह गए
तरक्की ताकते रह गए
 अपनी जहां में यारो .......डॉ नन्द लाल भारती 20.05.2013

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