Tuesday, September 24, 2013

नरपिशाच,विरासत & वक्त ललकार देता है/कविता

वक्त ललकार देता है/कविता 
वक्त करता रहता है शिनाख्त ,
गढ़ता रहता है पहचान
तुला पर आंक- आंक कर .
फर्ज पर फ़ना हुआ जो
शक्तिमान बना देता है ।
मुश्किलों में रहकर  जो
करे त्याग सेवा काम
बोये वफ़ा-ईमान ,
अदना हो भले ही इन्सान वही
तपस्वी समान होता है। 
क्षमा कर थाम ले हाथ जो
वही दयावान होता है।
समता-परमार्थ की राह पर जो
खुद को  करे न्योछावर
 इंसान वही भगवान होता है।
दे रहा हो जो  आंसू बो रहा जो
भेदभाव नफ़रत  के विष बीज
छिन  रहा हो हक़,सुख चैन 
इन्सान वही शैतान होता है।
अपना वादा बने नेक इंसान
बोते रहे समता-सदभावना के शब्द बीज
क्योंकि वक्त ललकार देता है। …। डॉ नन्द लाल भारती  25 .09.2013

विरासत/कविता 
चलती सांस जीवन अधारा ,
रुकी तो थम गया चक्र सारा ,
ना मिले दोबारा जीवन अनमोल ,
पानी का बुलबुला कहाया ,
अंजन पथ का पथिक
परायी दुनिया में मन रमाया
ना जाने कोई 
अगला पल कैसा होगा ,
क्या लायेगा कुछ
या कुछ ले जायेगा ,
उजली विरासत
जीवन की रिश्तो की माला
फ़र्ज़ से सींचना  है
यही यादगार रह जायेगा ……
डॉ नन्द लाल भारती  24  09.2013  


नरपिशाच /कविता

मुर्दाखोर नर पिशाच
कब्र खोद बैठे हैं,
दीन -वंचितों की  तरक्की की ,
हर राह रोक बैठे है ,
फिक्र सताती है  उनको
वंचितों की सांस क्यों नहीं
मिल जाती है उनको ,
वजह यही अपनी  जहां में

हाशिये के आदमी की
चौखट ख़ुशी ,
ठहर नहीं पाती  है
सच है यारो ,
शोषित आदमी को

छल-भेद भरी अपनी जहां
बहुत सताती है………………।
डॉ नन्द लाल भारती  23 09.2013  





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