Wednesday, June 18, 2014

रंज -ए -दस्तूर /कविता

रंज -ए -दस्तूर /कविता
ये अपनी जहां वालो ,
ये रंज- ए- दस्तूर क्यों ?
इसलिए अदना मैं ,
म्यां में अपनी ,
समता -सदभावना के ,
अमृत बीज रखता हूँ
यही हमारी गुस्ताखी है ,
मौके-बेमौके बोता चलता हूँ………
ख्वाहिशें तो हमारी भी है ,
चादर पाँव तक हो बस
हमारी माँ -बहन -बेटियां
तुम्हारी भी हो ,
तुम्हारी तो हमारी है ही…………।
क्या उंच क्या नीच ,
हर माँ बहन बेटी को मान दो ,
तुम्हे अप्पो दीपो भवो का स्व-मान हो ,
जीओ और जीने दो का,
तुम्हे भी भरपूर ज्ञान हो ..........
यदि यही है
हमारी गुस्ताखियाँ ,
ये अपनी जहां वालो मैं ,
अपनी गुस्ताखियों पर
फना होने को हरदम तैयार हूँ
समय के पुत्र हम ,
हमें तुम्हारे रंज- ए -दस्तूर का
खौफ नही ,
मैं तो अपनी म्यान में
समता-सदभावना के
अमृत बीज रखता हूँ ,
मौके-बेमौके बोता चलता हूँ………
डॉ नन्द लाल भारती
13 जून 2014

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