किससे कहू दिल की बात
यहाँ काँटों का जाल ।
विषमाद की बिस्सत जहा ।
बेआबरू सज्जनता
दुर्जनों की महफ़िलो में ।
दीनता का तांडव
आश्वासनों की
कायनात में ।
मानुषो को
अमानुषता भाति नहीं ।
क्या करू
किससे कहू भारती
पत्थरो के सामने
नतमस्तक
हो लेता हूँ ..... नन्द लाल भारती २८.०६.२०१०
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जमाने ने दिए है
घाव बहुत
रिस रहा अभी भी खूब।
दिल चाहता है
तोड़ लू
तरक्की के हर तारे ।
विहस उठे माटी
हर तरक्की गुजरे होकर
दीन के द्वारे।
कर्म की लाठी
हौशला साथ है
हर दीन की तरक्की
अपना तो
यही ख्वाब है ।
जब माथे
देवतुल्य
इंसानों का हाथ है । नन्द लाल भारती ...२८.०६.२०१०
Monday, June 28, 2010
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बहुत अच्छी अभिव्यक्ति !!
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