आओ कर ले विचार ॥
मेहनतकश हाशिये का
कर्मवादी आदमी
फ़र्ज़ का दामन क्या थाम लिया ?
नजर टिक गयी उस पर जैसे कोई
बेसहारा जवान लड़की हो ।
शोषण,दोहन की वासनाये
जवान हो उठती है
कापते हाथो वालो
उजाले में टटोलने वालो के भी
दबंगता की बांहों में झूलकर ।
हाल ये है
कब्र में पाँव लटकाए लोगो का
जवान हठधर्मिता के पक्के धागे से
बंधो का क्या हाल होगा ?
जानता है
ठगा जा रहा है युगों से
तभी तो कोसो दूर है विकास से
थका हारा तिलमिलाता
ठगा सा छाती में दम भरता
पीठ से सटे पेट को फुलाता
उठता है गैती,फावड़ा
कूद पड़ता है
भूख की जंग में
जीत नहीं पता हारता रहता है
शोषण ,भ्रष्टाचार के हाथो
टिकी रहती है बेशर्म नज़रे
जैसे कोई
बेसहर जवान लड़की हो ।
यही चलन है कहावत सच्ची है
धोती और टोपी की
धोतियाँ तार-तार और
टोपिया रंग बदलने लगी है
तभी तो जवान है शोषण भ्रष्टाचार
और अमानवीय कुप्रथाये
चक्रव्यूह में फंसा
मेहनतकश हाशिये का आदमी
विषपान कर रहा है
बेसहारा जवान लड़की की तरह ।
खेत हो खलिहान हो
या
श्रम की आधुनिक मण्डी
चहूओर मेहनतकश
हाशिये के आदमी की
राहे बाधित है
सपनों पर
जैसे
पहरे लगा दिए गए हो ,
योग्य अयोग्य
साबित किया जा रहा है
कर्मशीलता योग्यता पर
कागाद्रिष्टि टिकी रहती है ऐसे
मेहेनात्काश हाशिये का आदमी
कोई बेसहर जवान लड़की हो जैसे ।
कब तक पेट में पालेगा भूख
कब तक ढोयेगा
दिन प्रतिदिन
मरते सपनों का बोझ
दीनता-नीचता का अभिशाप
कब तक लूटता रहेगा हक़
मेहनतकश हाशिये के
कर्मवादी आदमी का
आओ कर ले विचार ...........नन्दलाल भारती ०३.०१.2011
Monday, January 3, 2011
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment