लिख देना हूँ ॥
मै वो सब लिख
देना चाहता हूँ ,
अक्षरों के लाल जोड़ देना
चाहता हूँ ।
कोरे पन्ने पर
कविता के रहस्य
असरदार ,
बात मुद्दे की जोड़ देना
चाहता हूँ।
साम्य क्रांति जो
ला सके,
सब कुछ वो जोड़
देना चाहता हूँ।
कविता के वजनदार
रूप में ,
करे जो
तानाशाहों पर वर
भेद करने वाले को दे
दुत्कार ।
नफाखोरो को धिक्कार
नशाखोरो का करे बहिष्कार ।
ऐसा कुछ
लिख देना चाहता हूँ
दीन असहायों के काम
आ सके
मानवता की ,
पहचान बन सके ।
लेखनी को वेग देना
चाहता हूँ ,
तमन्नाओ को किनारा
मिल सके
भविष्य खुबसूरत
नसीब हो सके ।
भारती समता की लकीर
खिंच देना चाहता हूँ ।
जहा गरीबी की रेखा
पहुँच ना सके ।
मै वो सब लिख देना चाहता हूँ.............॥ नन्दलाल भारती ...
Monday, November 15, 2010
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