Monday, November 29, 2010

तप

तप
मुकद्दर का क़त्ल
कभी
सोचा ना होगा ।
विश्वास के बसंत में
पतझड़ ना होगा ।
भरी महफ़िल में
जनाजा
निकलता रहा ।
पक्की धुन का
राही
अश्रु पीता रहा ।
कठोर श्रम
लहुलुहान अरमान
लिख गया ।
सद्कर्म,
नेक इरादे का सपना
बिखर गया ।
कहते है
प्रोत्साहन हौशला
बढाता है ।
अरे यहाँ तो
क़त्ल
किया जाता है ।
बार-बार के
क़त्ल की
कहा करे
फ़रियाद ।
उफनता
विष का दरिया
रिसे पल -पल मवाद ।
कहता भारती
भले इरादे से
भोगा कष्ट
व्यर्थ ना जाएगा ।
पुष्पित है विश्वास तो
कल
तप
बन जाएगा .... नन्दलाल भारती

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