आज जैसा ॥
आज जैसा
पहले तो न था
हंस -रोकर भी
बेख़ौफ़ सो लेता थे ।
मौज में सब का प्यार
सब में बाँट देता था
शायद
तब बचपन था ।
उम्र क्या बढ़ी
फ़र्ज़ के पहाड़ के नीचे
आ गया हूँ ।
तमाम मुश्किलों से
निपटने के लिए,
उम्र का बसंत बेंच चूका हूँ ,
रोटी आंसुओ से
गीली कर रहा हूँ।
अभाव की चिता पर
भी
जी लेता हूँ,
जुल्म का जहर पी लेता हूँ .
उम्मीदों के दम
दम भर लेता हूँ.
असि की धार पर
चल लेता हूँ।
पेट की बात है
तभी तो हर दंश
झेल लेता हूँ
सच मानो यारो
स्वर्ग सी दुनिया में
रहकर भी
नरक भोग लेता हूँ। नन्द लाल भारती ...
Wednesday, March 9, 2011
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