Wednesday, March 9, 2011

पीर की
महफ़िल में
जख्म
खुद का
खुद ही
सहला लेता हूँ ,
पल-पल
रंग बदलती
रगों को
कागज पर
उतार
लेता हूँ...नन्द लाल भारती

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