उसूल ॥
जमाने की भी में
हम ना खो जाये
नहीं
इसका गम मुझे ।
गम है यही कि
उसूलो का जनाजा
ना निकल जाये ।
सींचे है
लहू- पसीने से
जो
किया है त्याग
विषपान कर।
जिंदा रखने के लिए
आदमियत का
सोंधापन ।
थाती तो यही है
मेरी ज़िन्दगी भर की।
पराई दुनिया में
उसूलो के दम
जिंदा रहा ।
खौफ लगाने लगा है
उसूलो को रौदने का
षड्यंत्र होने लगा है ।
नहीं बुझी है
प्यास भेद भरे जहा में ।
आसूओ से
प्यास बुझाने लगा हूँ ।
सजग रहता हूँ
हर दम भारती
कही मर ना जाए
मेरे उसूल
किसी फरेब में
फंसकर ...............नन्दलाल भारती ॥ ०८.१०.२०१०
Friday, October 8, 2010
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सुन्दर अति सुन्दर
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