Monday, October 11, 2010

.. धरोहर ॥
मांटी के लोदे -लोदे पर टिका
आशियाना ,
ईंट, पत्थर
या
हो खपरैल का ।
निहसंदेश साझे परिवार की
अमिट मिशाल रहा ।
जहा कईA पीढ़िया करती रही
एक साथ निवास ।
जहा हर एहसास
एक सा था
हुआ करता ।
छांव , धुप , चांदनी
या रही हो कलि रात ।
ठंडी ,गर्मी की तपन
या
सोंधी बयार।
लोग जहा होते थे
कलह, दंभ से बेखबर ।
सब का सब
होती थी एक नजर ।
उपजता था
जहा सच्चा विश्वास ।
अहंकार जहा सिर
माहि उठा पाता था ।
तीब्र आवेश भी
मर्यादा में ढल जाता था ।
सच यही तो सुख
और
पारिवारिक आनंद है ।
साझे परिवार का
खैपरैल की छांव का ।
मांटी के चूल्हे का सोंधापन
पीढियों का एक घर ।
जहा घर मंदिर
और
नारी गृहलक्ष्मी थी ।
यही तो
पारिवारिक सम्पदा
और
विरासत है ,
साझे परिवार के
स्थायीपन का भी ।
अफसोस बहुत कुछ
टूट रहा है ।
आधुनिकता का विषधर
अपनत्व साझेपन
और
पीढियों के कुनबे को
डंस रहा है ।
संवर लो भारती
पुरखो की धरोहर
संयुक्त परिवार
और
उसके निश्छल सोंधेपन को भी ............नन्दलाल भारती ... ११.१०.२०१०

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