Saturday, October 9, 2010

सिंहासन उखड सकता है..............

सिंहासन उखड सकता है.............
हसरतो को मिल रहे
घाव हजारो ,
दम्भी जमाना कर रहा
तिरस्कार प्यारे ।
मौज थी अपनी
धुन की पक्की ,
जीत पलको पर
बाढ़ सच्ची ।
हसरतो का क़त्ल
निरंतर,
उमड़ रहा परायापन का
समंदर ।
बेगानेपन की तूफान
बढ़ रही जो आज
दमन का भयावह
राज।
हाल हो गयी है
साख से बिछुड़े
पत्ते की तरह
जिद है अपनी भी यारो
पुआल की रस्सी की तरह .
जान गया हूँ
आदमी को बांटने वालो
कमजोर की नसीब को
नहीं मिलेगा मुकमल जहा
भेद का नर-पिशाच
नफ़रत की आग
दीन को दीन बनाये रखने की
साजिश जवान हो जहा ।
याद रखना हक़ छिनने वालो
दीन का शौर्य
इतिहास नया लिख सकता है ,
दे दो हिस्से का आसमान
वरना
सिंहासन उखड सकता है ......नन्दलाल भारती..१०.१०.२०१०

7 comments:

  1. याद रखना हक़ छिनने वालो
    दीन का शौर्य
    इतिहास नया लिख सकता है



    भावों की अच्छी प्रस्तुति.

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  2. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (11/10/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा।
    http://charchamanch.blogspot.com

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  3. सटीक लिखा है आपने ……………॥शब्दो को बहुत सुन्दरता से सजाया है आपने ………………लिखते रहिये ………शुभकामनाये

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  4. जान गया हूँ
    आदमी को बांटने वालो
    कमजोर की नसीब को
    नहीं मिलेगा मुकमल जहा

    बहुत सार्थक और सटीक बात कही है ..

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  5. बहोत सही लिखा है आपने ........बधाई

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  6. उत्तम रचना है… और अधिक प्रकाशित करते रहें…

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