Monday, October 30, 2017

कैसी मजबरी और कैसा शहर

।।।।।। कैसी मजबूरी।।।।।
ये कैसी सल्तनत है
जहां शोषितों को आंसू
अमीरों को रत्न धन मोती,
मिलते हैं,
शोषितो के नसीब दुर्भाग्य
बसते हैं
पीडित को दण्ड शोषक को
बख्शीश क्या इसी को
आधुनिक सल्तनत कहते हैं
ये कैसी सल्तनत है
जहाँ अछूत बसते हैं........
दर्द की आंधी जीवन संघर्ष
अत्याचारी को संरक्षण
निरापद को दण्ड यहां
हाय. रे बदनसीबी
जातिवाद, अत्याचार,चीर हरण
हक पर अतिक्रमण, छाती पर
अन्याय की दहकती अग्नि
विष पीकर भी देश महान
कहते हैं
ये कौन सी सल्तनत मे
सांस भरते हैं.....................
श्रमवीर,कर्मठ, हाशिये के लोग
अभाव,दुख,दर्द मे जी रहे
खूंटी पर टंगता हल, 
हलधर सूली पर झूल रहे
महंगाई की फुफकार 
आमजन सहमे सहमे जी रहे
अभिव्यक्ति की आजादी लहूलुहान
कलम के सिपाही मारे जा रहे
चहुंओर से सवाल उठ रहे
कैसी सल्तनत ,लोग
भय आतंक के साये मे जी रहे......
बढ रहा है खौफ़ निरन्तर 
जातिवाद का भय भारी
जातिविहीन मानवतावादी 
समाज की कोई ले नहीँ रहा जिम्मेदारी
जातिवादी तलवार पर सल्तनत है प्यारी
इक्कीसवीं सदी का युग पर,
छूआछूत ऊंच नीच का आदिम युग है जारी
इक्कीसवीं सदी समतावादी विकास का युग
जातिवाद रहित जीवन जीने का युग
हाय रे सल्तनत तरक्की से दूर
जातिवाद का बोझ ढो रहे
हम कौन सी सल्तनत मे
जीने को मजबूर हो रहे........।
हाय रे सल्तनत बस मिथ्या
शेखी
कभी, बाल विवाह, गरीबी, शिक्षा के
दिन पर गिरते स्तर,बेरोजगारी,स्वास्थ्य
जातीय उत्पीडन,घटती कृषि भूमि
घटती खेती किसानों की मौत पर
सामाजिक जागरण या कोई बहस देखी
अपनी जहाँ वालों आधुनिक सल्तनत
हमसे है हम सल्तनत से नही
ऐसी क्या मजबूरी है कि मौन
सब कुछ सह रहे
सल्तनत कि जय जयकार कर रहे...........
डॉ नन्दलाल भारती
17/09/2017

कैसा शहर(कविता)
ये कैसा शहर है बरखुरदार
ना रीति ना प्रीति
धोखा, छल फरेब,षड़यंत्र
ये कैसे लोग कैसा तन्त्र
मौत के इन्तजाम, छाती पर प्रहार
ये कैसा शहर है बरखुरदार......
ये कैसा शहर,आग का समंदर
डंसता घडिय़ाली व्यवहार
पारगमन की आड़ मे अश्रुधार
रिश्ते की प्यास , जड मे जहर
हाय रे  पीठ मे भोकता खंजर
पुष्प की आड़ ,नागफनी का प्रहार
ये कैसे लोग हैं बरखुरदार...........
मन मे पसरा बंजर ,तपती बसंत बयार
जश्न के नाम करते घाव का व्यापार
छल स्वार्थ के चबूतरे ,दिखावे के जश्न
जग हंसता,चक्रव्यूह मे रिश्ते वाले प्रश्न
छल,भय,जादू से ना जुड़ सकती प्रीत
ना कर अभिमान, ना पक्की जीत
धोखे से असि का ना कर प्रहार
बदनाम हो जाओगे बरखुरदार......
ना लूट सपनों की टकसाल
ना कर मर्यादा पर वार
तेरा भी लूट जायेगा एक दिन संसार
आंसू दिये जो , मिलेगा तुम्हें गुना हजार
कैसे मानुष जिह्वा पर विष,मन मे कटार
युग बदला तुम ना बदले कैसे तुम, कैसा शहर ?
कैसी रीति कैसी प्रीति कैसा लोकाचार
रिश्ते को ना करो बदनाम बरखुरदार.......
डॉ नन्दलाल भारती
16/09/2017

1 comment:

  1. बहुत ही उम्दा पोस्ट हे आपकी, जी जीवन का सही आइय्ना दिखाती है | आज का जीवन इतना कठिन हो गया हे की हम की पर भी भरोसा नहीं कर सकते और नहीं कोई काम साथ | Talented India News

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