Sunday, October 29, 2017

कविताएं।


सत्या और सावित्री।।।।

कभी सोच सकता है 
कोई माँ बाप
अरमानों को ढाठी और
जीते जी मौत की की सजा
उसका अपना ही खून देगा
हुआ है यही उस माँ बाप के साथ
लगा दिया जीवन  की पूँजी
जिस बाप का उजड़ गया भविष्य
बेटा का भविष्य संवारने में
उसी बाप को दण्ड.......
बाप  माँ को औलाद का
हर दर्द रुलाता है
तेरा भी दर्द रुलाता था
तुम्हें तो याद नहीं होगा
बरामदे की सीढ़ी से जब तू गिरा था
नाक से तुम्हारी कुछ कतरा लहू का बहा था
गुप्ता आंटी तुमको अस्पताल लेकर गयीं थी
बदनसीब बाप तुम्हारी मरणासन्न माँ को 
अस्पताल,
आंखों में आंसू लेकर........
वो विपत्ति के दिन थे तुम्हारे बाप के लिए
माँ का साँस रुकते रुकते चल पड़ी थी
यह तुम्हारे बाप के लिये नया जीवन था
मुसीबत के दिनों तुम्हे तुम्हारे बाप ने
कोई तकलीफ़ नहीं होने दिया
बड़की बहन तुम्हारी चेतन थी
तुमसे थोड़ी सी अधिक
छोटका तो बोल भी नहीं पाता था
समझता था अधिक 
अपनी माँ की अवदशा और 
बाप की दुर्दशा से अवगत था
तुम्हारी बड़की बहन कैसे बाप का हाथ बटाती थी
तुमको दूर रखती थी ताकि बचा रहे हर बला से.....
तू भूल गया होगा कितने दुर्दिन थे 
वो दिन तुम्हारे माँ बाप के लिए
तुम्हारी बहन तुमको कैसे खिलाती थी
कैसे सुलाती थी,कैसे नहलाती थी
खुद भी तैयार होती थी, 
तुमको लेकर स्कूल जाती
सबसे छोटका पड़ोसियों के हवाले होता था
तुम्हारा बाप पहले अस्पताल फिर दफ्तर
लंच टाइम में अस्पताल और 
तुम बच्चों की देखरेख यही दिनचर्या थी
उसके खाने सोने तक को वक्त नहीं था....
तुमको इतना तो याद ही होगा
छोटका बाप को देखते कितना ,
उदास हो जाता था
रात में जब बाप सोता था तो 
वही गले मे हाथ डाल कर सोता था
तुमको यह भी मालूम होगा क्यो
क्योंकि तेरा बाप को तुम नन्हे मुन्नों को
खिला पिला,सुलाकर अस्पताल जो
 जाना होता था
जहाँ बिस्तर पर पड़ी
जीवन मृत्यु से संघर्षरत
तेरी माँ राह देखती तुम बच्चों का
कुशलक्षेम जानने के लिए......
बकरी कसाई चिकित्सक की गलती ने
जीवन भर के लिए दर्द तो दिया
पर तुम लोगों को देख कर
तुम्हारे माँ ही नहीं
दादा दादी, काका काकी तक झूम उठते थे
तुम खानदान के पहले अभियंता हुए
तुम्हारे बाप ने तुम्हारा ब्याह
दहेज़ रहित करने का वादा किया था
पूरे खानदान ने साथ भी दिया था
तुमने बाप की मदद तो नही किया
हाँ ससुराल वालों की किया
शायद यही तुम्हारे कर्ज़दार होने की
पुख्ता वजह  होगी........
वाह रे बेटा कटप्पा दुल्हन के आते ही
दुल्हन और उसके माँ बाप के गुलाम हो गये
चूल्हा अलग कर ,माँ बाप को 
गुनाहगार बना कर 
जहर पिला दिया
वाह रे सास ससुर के वफादार कटप्पा
माँ बाप के अरमानों का कत्ल कर दिया
जीते जी मार दिया
दुल्हनियां और उसके माँ बाप के 
काले जादू के मायाजाल में फंसकर
बेटा कटप्पा तू जहां भी रह खूब तरक्की कर
बूढ़े माँ बाप जी लेंगे छोटके की अंगुली पकड़कर
तू माँ बाप के जनाजे में भी नही आएगा
तब तेरे मृत माँ बाप की आत्मा को कोई
तकलीफ नही होगी
हाँ छोटका अभी पांव जमाने लायक
हुआ नहीं हैं हो जाएगा
छोटका जब सचमुच छुटका था
माँ बाप के दर्द को समझता था
तनिक बडा होकर अधिक समझता है
छोटका छोटा ही सही
सहारा बनता है, माँ बाप के दर्द पर
रो पड़ता है,
हे भगवान तू अगर है तो छोटके को
सफल और संपन्न बना दे ताकि
बूढ़े माँ के जीने का ठोस सहारा बन सके।
जा कटप्पा जा,हो जा नजरो से दूर
खून के कतरे को विखंडित करने वाली
मन से अंधी पगली,तुम्हे भ्रम के जाल में
फंसाकर
परिवार के टुकड़े टुकड़े करने वाली 
आज की कैकेयी को लेकर 
सत्या और सावित्री जी लेंगे
छोटके की अंगुली पकड़कर ।।।।

डॉ नन्दलाल भारती
19/08/2017










भला कौन बदनसीब
सोच सकता है,
उम्र भर पीया ज़हर
संघर्षर रहा, जिसके लिए 
वही पर आते ही
मौत की दुआ करेंगे
यही कर रहे खून के कतरे
सोचा जो हो नहीं रहा वो
हो रहा वही जो सोचा न था
 कभी,
खुद के लहू का कतरा
मौत मुकर्रर करेगा 
कौन सोच सकता है
अपना,अपना ही सपना
तबाह कर देगा
तपस्या के बदले मौत का 
पैगाम 
फिर भी सलामती मे उनकी
उठते है हाथ,
बेमुरव्वत, बेदर्द वे जो नहीं
खड़े होते साथ
वाह रे अपनी जहाँ के माँ बाप
ढो लेते है औलाद का घाव।।।

डॉ नन्दलाल भारती
17/08/2017









।।।। मजबूरी ।।।

माँ-बाप क्या होते हैं ?
 धरती के भगवान
बेटे कहां समझते हैं
माँ-बाप सब कुछ
समझ जाते हैं
कुल के उध्दारक 
और भी बहुत कुछ
बेटे जो कुछ नहीं समझते
माँ बाप बेटे की
वाह-आह-सांस तक के
मर्म को समझ लेते हैं
बेटे अब माँ-बाप के
आंसू तक को नहीं समझते
माँ बाप के अरमानों का
कर देते हैं क़त्ल
जीते जी देते हैं मार
माँ-बाप क्या चाहते हैं
खुद के लिये तनिक छांव
खूब तरक़्क़ी  बेटे के लिए
 दृढ़ इच्छा के लिए
कभी सेतु तो कभी पहाड़
बनते रहे
कभी खुद को गिरवीं रखते हैं
सिर्फ बेटे की तरक्की के लिये
हाँ माँ-बाप की एक और
होती है ख्वाहिश अपने लिए
इसी लिए माँ बाप हर दर्द
सह लेते हैं
हर विष पी लेते हैं
वह ख्वाहिश इतनी सी है
बेटे के कंधे पर अंतिम यात्रा
इसी ख्वाहिश के लिए 
सहते है, दुःख-दर्द ज़िल्लत भी
कुछ माँ बाप को यह भी
नहीं नसीब होता
पांव जमते ही कुछ निर्मोही
बेटे छोड़ देते माँ -बाप को
दुनिया छोड़ने से पहले 
माँ बाप मजबूर हो जाते हैं
जी कर भी मरने के लिये ।।।।
डॉ नन्दलाल भारती
15/08/2017








।।आज़ादी का जश्न।।
आज़ादी का जश्न पंद्रह अगस्त है
राष्ट्र दुलारे
राष्ट्र के प्रति स्व निश्चित हो
कर्तव्य हमारे
बच्चे जवान बूढ़े भी वीर जवान
हो जाये
दुश्मन आंख तरेरे जब
तान कर छाती खड़े हो जाये
देखना दुश्मन पीठ दिखा देगा
जब हम देश और संविधान पर
मरना मिटना सीख जाएं
क्या दलित क्या आदिवासी
क्या हिन्दू क्या बौद्ध क्या जैन
क्या सिक्ख क्या मुसलमान
क्या ईसाई
समता, सदभावना कुसुमित रहे सदा
शांति समानता, राष्ट्र प्रेम का गूंजे नारा
जाति धर्म भेद की ना उठे चीख 
एकता सर्वधर्म सद्भभावना
 सबका साथ सबका विकास हो
उद्देश्य हमारा,
पंद्रह अगस्त आज़ादी का जश्न
आभा निराली जहाँ में बढ़ जाये
देश अपना जान से देश का मान
सारे जहाँ में बढ़ जाये
सर्वधर्म समानता चहुमुखी विकास के
पुष्प खिले नित नव नव
खुश्बू से जहां महक जाये
आजादी का जश्न पंद्रह अगस्त
अमर शहीदों का बलिदान
आओ प्यारे आज़ादी का जश्न
हंसी खुशी मनाएं
अमर शहीदों की विरासत आज़ादी
अमर रहे
भारत माता की जयकार लगाएं।।।
डॉ नन्दलाल भारती
13/08/2017

No comments:

Post a Comment