Sunday, October 29, 2017

कविताएं

तूफानों से कह दो कोई
ना उम्मीदों के तम्बू उखाड़ा करें
बहुत बार उखड़े और गड़े
नहीं खत्म हुई उमीदें
बार बार विषपान कर भी
उसूलों की धार पर
संजती रहे उम्मीदे
कुछ बेबसी सी लग रही है
उठती हुई तूफ़ान में
शोर  जाना पहचाना लग रहा है
लगता है कोई गर्दन रेत रहा है
ये दर्द अनजानी तूफानों का नहीं
दर्द की शिनाख्त है
जिनके लिये मानी थी मन्नतें अनेकों
झरा लहू तन से रिसकर
आज मिल रही मौत पल पल
यही वजह है कि ये दर्द
चैन से जीने नहीं दे रहा है
तूफानों का बेखौफ शोर
ज़िन्दगी के मायने बदल रहा है।।।
डॉ नन्दलाल भारती
22/07/2017








ये क्या लिख दी तुमने कहानी
तुझे कुनबे ने माना था अपना
पानी
दिल के टुकड़े कर दिए
कांच जैसे विहार पर तुमने
पत्थरों के प्रहार कर दिये
तुमसे बस लगा ली थी नेह
न्यौछावर तुम अर्जित जीवन
के स्नेह
क्या यही खता है हमारी
तूने रच दी बर्बादी की कहानी
माना कुनबे ने तुझे ज़िन्दगानी
तू बेटी सह बहुरानी
क्यों छुरा मार दिया दिल पर हमारे
 क्यों खुद को समझ लिया नौकरानी
तूने क्या किया ?
अपयश के शोले छोड़ 
लिख दी बेमौत मारने की कहानी
हम तो जी लेंगे तपती रेत पर
हम तो दर्द की पीठ पर  थे
जीना सीखे
डर है तो बस तुम्हारा मेरी नूर
साथ रच दी ख्वाब ने तुम्हारे
खिलाफ साज़िस
बिखर जायेगे तुम्हारे ख्वाबों के
कोहिनूर
संभल जा ना कर ज़िद
ना रच लाठी तोड़ने की साजिश
कांपते हाथ, कब्र की ओर बढ़ते कदम,
घबराते दिलो के ख्वाब
संवार देगे तेरे जीवन हर ख्वाहिश।।।।।।
डॉ नन्दलाल भारती
20/07/2017

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