Saturday, October 28, 2017

कविताएं

बरखूरदार हमारी फिक्र ना किया करना
 फिक्र मे हमारी ना वक्त जाया करना,
तुम अपने  सपनों को पूरा करना
हां फर्ज़ को भी ना विस्मृत करना
तुम्हारे सपने हमारी उम्र हैं
सांसे भी हैं भरना
तुम हमारी खबर भी नहीँ लोगे
सच मानो हमे कोई अफसोस
नहीं होगा
गर कोई खबर होगी हमारी तो
तुम तक पहुंच ही जाएगी
तुम खुद को परेशां ना करना
हम तो गैर हैं बरखूरदार
हमारी खबर लेकर क्या करना ?????
इतना एहसान जरूर करना
वक्त मिल जाये गर तो
अपनी खबर जरूर दे दिया करना ।।।।।।
डॉ नन्दलाल भारती
15/09/2017














राहें कहाँ आसान हैं
चलना है शूल पर भी
पूरे होश मे 
रिसते जख्म से उपजे
दर्द को पीकर भी
पार करना है जो
जातिवादी चक्रव्यूह को 
खींचना है पाषाण के वक्ष पर
होने के अपने कुछ सबूत
खप रही है
चक्रव्यूह मे संघर्षरत शोषित की
अनमोल जिन्दगी
जातिवादी दुनिया का जीवन
कांटों का जीवन है
हारना नहीं जीतना है
जीना है समतावादी जीवन
गढना है पुरुषार्थ की तस्वीरे
लिखना है तकदीरें
आसान नहीं पर नामुमकिन भी नहीं
बुध्द की भूमि आओ हाथ बढाओ
इंसानियत की राह सबसे है सही।।।।
डॉ नन्दलाल भारती
12/09/2017

















सुना है श्राद्ध पक्ष चल रहा है
यानि 
पुरखों के तर्पण का वक्त
विरोधाभास कितना भारी है
मरे हुए को खुश करने का
खोखला प्रपंच
ढकोसले के सिंहासन पर
सुशोभित कर
किसी गैर को खुश करने के बहाने
अपने मृतक को खुश करने का
भरम
क्या है ये मरम ?
मरे हुए कि  आत्मा को 
खुश करने के लिए नाना प्रकार के व्यंजन
हो रहे खूब दान धरम
ये कैसा रिवाज है
मरे हुए के नाम पर भारी भोज
दिखावा दान धरम रोज
दूसरी ओर जीवित माता पिता
कहने को धरती के भगवान
ना भर पेट रोटी ना आश्रय
आंसू पीकर खुद को पोस रहे
वक्त को कोस रहे
जीते जी मर रहे रोज
अरे अपनी जहां वालों
बहुत हुआ ना करो पाखंड
अब तो बदल दो अपनी सोच
रखो ध्यान जीवित माता पिता की
पलकें ना हो गीली 
उन्हें तनिक ना सताना
मान दो सम्मान दो उनको
वही है तुम्हारे जीवनदाता
और 
धरती के जीवित भगवान।
डॉ नन्दलाल भारती
10/09/2017





इंसान रिश्तों की डोर मे बधकर 
कर जाता है पार जिन्दगी की
हर मुश्किलें
रिश्ते जीवन को उम्र देते हैं
जीने के हौशले भी
रिश्ते ही होते है
रिश्ते के निश्छल बहाव से
गढ जाती है अमर तस्वीरे
बन जाती है जो दुनिया के लिये नजीरें
रिश्ते ही तो है जीवन के लिए
आक्सीजन
मौत के सौदागर जाने अनजाने
रिश्तेदार का धारण कर लेते हैं 
चोला
बहुरूपिये यही 
लहूलुहान कर देते हैं रिश्ते की मीनारें
खींचवा देते हैं
खून के रिश्ते के बीच तलवारें
रिश्तों के बीच अमानुषों का प्रवेष
ढहा देता है 
रिश्ते की मीनारें और
बेमौत मार देता है सपने
पराये हो जाते है अपने
रिश्ते मर्यादा को बचाना होगा
बहुरूपिओ को पहचानना होगा
रिश्ते की आन मान बचाये
रिश्ते को जीवन का ध्येय बनायें।
डॉ नन्दलाल भारती
09/09/2017




 






।।। ओणम ।।।

ओणम अखण्ड भारत के,
चक्रवर्ती महाराजा बलि को
याद करने का दिन
स्मृतियों को नमन करने का दिन
यादों का उत्सव मनाने का दिन
महाराजा बलि के प्रति आस्था
व्यक्त करने का दिन
गौरव गाथा को ,
नमन करने का दिन
समता और मानव कल्याण के
आह्वान का दिन
अखण्ड भारत के मूलनिवासी
चक्रवर्ती महाराजा के 
पुनर्अवतरित होने की 
कामना का दिन
सुखद समतावादी राज के
स्थापना के मन्नत का दिन
आओ करें कामना
मूलनिवासी महाराजा के
राज की फहराये पताका
भारत भूमि का हो
बलि महाराजा
ओणम अपनी जहां का 
होवै मंगलदिन
महाराजा बलि के राज की होवे
पुर्नस्थापना
शुभकामना, जीवन का हर दिन हो
मंगलकारी शुभ दिन..............
.......Happy Onam ......
डॉ नन्दलाल भारती
04/09/2017
बंगलौर










उसूल रहे जीने के सहारे अपने
टूटते बिखरते उम्मीदों के सपने
लगता डूबेगी नैया दूर होगें सपने
दुआओं के हाथ बनते पतवार अपने
उसूलों पर जीना दर्द होते भारी सहने
अपने होते विरोधी गैरों के क्या कहने
डंटे रहे उसूलों पर दूर होते स्वार्थी अपने
ना टूटा उसूल कुसुमित हुए सपने
दर्द भयंकर शूल रहे जो सगे अपने
उसूल की जम़ीं पर बोये जो सपने
ना धन दौलत ना साथ जाते पूरे सपने
हर हाल पुलकित होते जग मे अपने
हाय रे मतलब के भूखे खडे होते
उसूलों के खिलाफ देते आंसू
तोडते सपने।।।।।।।।
डॉ नन्दलाल भारती
03/09/2017




















जब तक हूँ तब तक हूँ
जानता हूँ
ना मेरे जनाजे में भारी 
भीड़ होगी
 ना पक्की कब्र होगी
ना चौराहे पर ताकती मूरत
यक़ी है वे लोग साथ होंगे
लोग जो साथ थे
सकूं होगा आत्मा को
गम होगा उन्हें ना होने का
यही मुट्ठी भर लोग
मुझे तो नहीं ज़िंदा कर सकेंगे
उसूलों को ढोते रहेंगे
जो हमने ढोया
जो कुछ सीखा था सीया था
लिया था वही वापस किया
चल  दिया अनन्त यात्रा पर 
लोग हमारे निकाल दिए
अंतिम यात्रा
यही जीवन है आना जाना
पाना और खो जाना
पंचतत्व में विलीन निगाहें
तुम्हे ढूढ़ती रही पर तुम थे 
गैरहाजिर जनाजे से भी
 तुमसे कोई उम्मीद भी  न थी
कई बार  भोंक चुके थे खंजर
भले तुम ना मानो 
मुझे तुम्हारी फिक्र सदा रही
दुआ है तुम्हारे लिए
उन्नति,-सदबुद्धि मिले तुम्हे और 
तुम चलते रहो लोककल्याण के पथ
आखिरी सांस तक
भेदभाव रहित समता संग
यही होगा मोक्ष तुम्हारे लिए
तुम्हारे होने की सफलता
और
तुम्हारे न होने का अफसोस भी जमाने को।।
डॉ नन्दलाल भारती
21/08/2017




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